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________________ पन्द्रहवाँ वर्ष वर्षावास संपूर्ण कर प्रभु महावीर ने वैशाली से वत्स भूमि की ओर प्रस्थान (विहार) किया। गाँवों, नगरों को पवित्र कर उन्होंने समाज में फैली बुराइयों को जड़ से उखाड़ फेंका। प्रभु महावीर कोशाम्बी पधारे, जिसे आज कोसम कहते हैं। कोशाम्बी का राजा उदयन एक ऐतिहासक व्यक्ति था। भारत की तीनों परम्पराओं में उसका वर्णन मिलता है। प्रभु महावीर कोशाम्बी के चन्द्रावतरण चैत्य में पधारे। उस समय वहाँ का राजा उदयन ही था। वह राजा चेटक की पुत्री मृगावती का पुत्र था। उसके पास हाथियों की विशाल सेना थी। वह वीणा बजाकर हाथियों को पकड़ा करता था। विपाकसूत्र में उदयन को हिमालय की तरह महान् और प्रतापी बताया गया है। जब उदयन को भगवान महावीर के कोशाम्बी पधारने का समाचार मिला, तो वह बहुत प्रसन्न हुआ। वह भी राजा कूणिक की तरह सजधजकर भगवान के समवसरण में आया। उसके साथ उसकी माता मृगावती और उसकी बुआ श्रमणोपासिका जयन्ती भी थी। जयन्ती श्रमणोपासिका अपने पुत्र के साथ बैठी थी। जयंती जीव-अजीव की ज्ञाता तो थी ही पर साथ में वह परम जिज्ञासु भी थी। वह हर प्रवचन में से जीवन के लिए तत्त्व खोजने वाली थी। । ___ जयंती का अपना जीवन साधु-सेवा के लिए समर्पित था। हर नये आने वाले साधु की जयंती खूब सेवा करती थी। जब कोशाम्बी में कोई नया साधु पधारता तो वह सर्वप्रथम जयंती की बस्ती में आता था। वह उन श्रमणों के साथ तत्त्वचर्चा करती थी। ___जयंती अर्हत् धर्म की अनन्य उपासिका और जानकार थी। प्रभु महावीर-जैसे तीर्थंकर से जो उसने प्रश्न पूछे वह जैन नारियों के लिए गौरव का स्थान रखते हैं। इन प्रश्नों से ज्ञात होता है कि उनका तत्त्व ज्ञान बहुत गहरा था। सब लोग धर्मसभा की ओर बढ़े जा रहे थे। समवसरण में पहुँचकर सभी लोगों ने सवारियों का त्याग किया। पाँच अभिगम छोड़े। फिर सीधे प्रभु महावीर को वन्दन करने राज्य परिवार आया। प्रभु महावीर की धर्म-देशना चल रही थी। सभी ने प्रभु महावीर के वचनामृत को श्रवण किया। तीर्थंकर के समवसरण की धरती को स्वर्ग से बढ़कर माना जा सकता है क्योंकि समवसरण समानता का प्रतीक है। वहाँ ऊँच-नीच वैर-विरोध का कोई स्थान नहीं होता। सभा विसर्जित हो जाने पर भी जयंती अपने परिवार के साथ वहीं ठहरी रहीं। अवसर पाकर धार्मिक चर्चा शुरू करते हुए जयन्ती ने पूछा-"भगवन् ! जीव भारीपन को कैसे प्राप्त होते हैं ?" प्रभु महावीर-“जयन्ती ! जीव-हिंसा, असत्य वचन, चोरी, अब्रह्मचर्य, परिग्रह आदि अठारह पाप-स्थानकों के सेवन से जीव भारीपन को प्राप्त होते हैं और चारों गतियों में भटकते हैं।" ___ जयन्ती-“भगवन् ! भवसिद्धिकता (मोक्ष प्राप्त करने की योग्यता) जीवों को स्वभाव से ही प्राप्त होती है या अवस्था विशेष से?" प्रभु महावीर-"भवसिद्धिकता स्वभाव से ही होती है, अवस्था-विशेष से नहीं। जो जीव भवसिद्धिक हैं वे अपने स्वभाव से ही वैसे हैं तथा रहेंगे और जो भवसिद्धिक नहीं हैं, वे किसी भी अवस्था में, किसी भी उपाय से भवसिद्धिक नहीं हो सकते।" जयन्ती-“भगवन् ! क्या सब भवसिद्धिक मोक्षगामी हैं ?' प्रभु महावीर-“हाँ, जो भवसिद्धिक हैं, वे सब मोक्षगामी हैं।" जयन्ती-“भगवन ! यदि सब भवसिद्धिक जीवों की मुक्ति हो जायेगी तब तो यह संसार कालान्तर में भवसिद्धिक जीवों से रहित ही हो जायेगा।" सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र - १४७ | Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Forp www.jainelibrary.org
SR No.003697
Book TitleSachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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