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पत्नी ने मेरा रात-दिन ध्यान रखा। वह मुझे पीड़ा-मुक्त न कर सकी। माँ दिन-रात मेरी पीड़ा के कारण रोती रही। धन मुझे नीरोग न कर पाया। पिता की हित-चिन्ता, माता, पत्नी, बहिन, भाइयों का रोना-धोना बेकार गया। कोई मंत्र, यंत्र व औषधि से मैं ठीक न हुआ। एक दिन मैं रात्रि में अकेला पीड़ा से कराह रहा था। तो मैंने सोचा कि 'अगर पीड़ा से मुक्त हो जाऊँ, तो मैं सुबह होते ही निर्ग्रन्थ मुनि बन जाऊँ।'
मैं सवेरे उठा, तो मेरी पीड़ा गायब थी। मैंने गुरु के चरणों में दीक्षा ग्रहण की। अब मैं अपनी आत्मा का नाथ बन गया हूँ। __ बस, यही दिन था जब श्रेणिक जैनधर्म के प्रति आकर्षित हुआ। अब वह रानी चेलना अभयकुमार के साथ प्रभु महावीर के दर्शन को जाने लगा था।
श्रेणिक जब युवा था। पिता ने सभी राजकुमारों की तीन परीक्षाएँ ली थीं। एक परीक्षा में महल को आग लगा दी गई। सभी राजकुमार आग के भय से भाग गये। राजा श्रेणिक ने सभी राज-चिन्ह जिनमें भंभा प्रमुख थी, बचा लिये इसलिए इसका नाम श्रेणिक भंभासार पड़ा। अनेकों मुनि के संपर्क के बाद राजा श्रेणिक प्रभु महावीर का परम भक्त बना।
भगवान महावीर से तत्त्वचर्चा एक क्रान्तिकारी चर्चा थी। उनके उपदेश से राज्य परिवार के मेघकुमार, नन्दीषेण आदि ने दीक्षा ग्रहण की। राजकुमार अभय और सुलसा आदि अनेक पुरुषों ने गृहस्थ धर्म स्वीकार किया। ___इस वर्ष का चातुर्मास प्रभु महावीर ने राजगृही में किया। यहाँ अनेक स्त्री-पुरुषों को धर्म-पथ पर लाकर उनका उद्धार किया। राजगृही में धर्म-क्रान्ति
राजगृही वह पवित्र नगरी है जिसकी भूमि को प्रभु महावीर के चरण स्पर्श का सबसे ज्यादा लाभ मिला है। प्रभु महावीर के समय यहाँ अनेकों ऐतिहासिक घटनाएँ हुई हैं। यहाँ का राजा श्रेणिक बिम्बसार था, जिसका जैनधर्म के
धर्म में अपना स्थान है। इस ऐतिहासिक राजा के प्रभ महावीर के साथ सांसारिक रिश्ते भी थे। राजगृही नगरी में 'गुणशील' चैत्य था जो राजगृही नगरी के उत्तर-पूर्व में स्थित था। इसकी प्राकृतिक छटा का वर्णन स्वयं भगवान महावीर ने हजारों बार किया है। प्रभु महावीर के समवसरण अक्सर यहीं लगते थे। राजा अपनी चतुरंगी सेना के साथ प्रभु महावीर के दर्शन करने आता, वन्दना करता, प्रश्नों का समाधान पाता, प्रवचन सुनता। राजा श्रेणिक प्रभु महावीर का परम भक्त था। यह नगरी प्राचीनकाल से ही जैनधर्म का केन्द्र थी। प्रभु पार्श्वनाथ के श्रावक व श्रमण भी वहाँ अलग चैत्य व पर्वतों पर विचरण करते थे।
इस राजगृही में प्रभु महावीर पावा से विहार कर पहुँचे थे, कई विद्वान् ऐसा मानते हैं। प्रथम उपदेश को श्रवण करते ही राजा श्रेणिक ने सम्यक्त्व को ग्रहण किया। उसे क्षायिक सम्यक्त्व था। इस सम्यक्त्व को धारण करने वाला फिर कभी मिथ्यात्व में नहीं उलझता। उत्तराध्ययनसूत्र में इसका निमित्त अनाथी मुनि द्वारा राजा श्रेणिक को दिया गया उपदेश है जिसके कारण वह प्रभु महावीर की शरण में आया था। अनेक पुत्र, पुत्रियाँ तथा प्रजा के लोग प्रभु महावीर के भक्त थे।
हम यहाँ इस वर्ष में प्रमुख दीक्षा ग्रहण करने वाली आत्माओं का वर्णन करेंगे। मेघ मुनि
मेघकुमार मगध सम्राट राजा श्रेणिक व रानी धारिणी का पुत्र था। राज्य-परिवार की परम्परा के अनुसार उसे बचपन में ही पुरुष की ७२ कलाएँ सिखाई गईं। जब शादी योग्य हुआ, तो आठ राज-कन्याओं के साथ उसकी शादी हो गई। उसने प्रभु महावीर का त्याग, वैराग्य परिपूर्ण प्रवचन सुना। वह दीक्षा के लिए तैयार हुआ।
सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र
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