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________________ सौन्दर्य देखकर चेटक की पुत्री सुज्येष्ठा श्रेणिक को चाहने लगी । इस चाहत को पूरा करने के लिए अभयकुमार ने एक योजना बनाई। पर राजा श्रेणिक समय पर न पहुँच सका । सुज्येष्ठा के प्रेम-सम्बन्धों के बारे में उसकी बहिन चेलना भी जानती थी। वह भी राजा श्रेणिक की रानी बनना चाहती थी । उसे भी अभय की गुप्त योजना का पता लग चुका था। राजगृह वैशाली तक एक लम्बी सुरंग का निर्माण किया जा चुका था। सुज्येष्ठा समय पर न पहुँची, पर चेलना पहुँच चुकी थी। अंधेरे में सैनिक रथ में चेलना को बिठा लाये । चेलना अभूतपूर्व सुन्दरी थी । वह मगध की पटरानी बनी। उसी का पुत्र कौणिक अजातशत्रु था। उसके दो पुत्र हल्ल - विहल भी हुए। अनाथी मुनि की घटना जैसे पहले कहा जा चुका है कि श्रेणिक कुछ समय के लिए बौद्ध धर्मावलम्बी बन चुका था। रानी चेलना जिनधर्म की सच्ची उपासिका थी। वह राजा को जैनधर्म में लाने के लिए प्रयत्नरत थी कि तभी एक घटना घटी, जिस घटना के प्रभाव से राजा जैन हो गया। राजगृह नगर के बाहर राजा मण्डिकुक्षि चैत्य की ओर भ्रमण करने निकला, जहाँ उसने एक ध्यानस्थ मुनि को देखा । अद्भुत रूप-सौन्दर्य उसके चेहरे से झलक रहा था। आयु से वह छोटा लग रहा था। राजा के मन में उसके प्रति आकर्षण पैदा हुआ। वह सोचने लगा कि 'भरे यौवन तरुणाई में वह साधु क्यों बन गया ? छोटी-सी आयु में साधु बना है। जरूर किसी वस्तु का घर में अभाव होगा । अभाव के कारण यह साधु बन गया है।' राजा ने सोचा- 'मुझे जरूर इस मुनि की सहायता करनी चाहिए।' राजा मुनि की तरफ देख रहा था। शीघ्र ही मुनि ने ध्यान खोला तो पाया सामने मगध सम्राट् श्रेणिक करबद्ध खड़ा है। राजा श्रेणिक ने पूछा - " मुनिराज ! इस भरी तरुणाई में आप साधु क्यों बन गये ? अभी तो आपके खाने-पहनने के दिन थे । कृपया कारण बतायें। मुझसे जो भी बन पड़ेगा, मैं सहायता करूँगा।" मुनि आत्म-ज्ञानी थे । उन्होंने देखा मगधराज को अपने धन पर अहंकार हो गया है। इसी अज्ञानवश उसने मुझसे यह बात कही है। मुनि ने उत्तर दिया- "राजन् ! मैं अनाथ था इसलिए मुनि बना हूँ ।" राजा श्रेणिक ने कहा- "कोई बात नहीं, तुम्हें किसी भी अभाव में रहने की जरूरत नहीं । मगध सम्राट् श्रेणिक तुम्हारा नाथ बनेगा, तुम्हें पूरा सहारा देगा ।" मुनि ने निर्भय होकर कहा - "राजन् ! तुम तो स्वयं अनाथ हो, तुम किसी के नाथ कैसे बन सकते हो ?" राजा ने मुनि का जब यह उत्तर सुना, तो दंग रह गया, फिर भी उसने स्पष्टीकरण करते हुए कहा - "तुम शायद मुझे नहीं जानते, मैं मगध का एकछत्र सम्राट् हूँ। मेरे पास चतुरंगी सेना, धन-धान्य है। मेरा परिवार विशाल अथाह सम्पदा का स्वामी हूँ। तुम मेरे साथ चलो और संसार के सुखों का आनन्द लो।" मैं मुनि ने कहा- "राजन् ! यह सब कुछ तो मेरे पास भी था । इसमें सुख कहाँ था ? यही तो अनाथपन है जिस धनधान्य को हम सुख का कारण समझते हैं, दुःख की घड़ी में इनमें से कुछ भी काम नहीं आता। मेरे भी सगे-सम्बन्धी थे। हमारा इनको नाथ मानना आक के दूध से खीर पकाना है ।" मुनि ने अपनी पूर्व कहानी शुरू की राजन् ! मैं कोशाम्बी नगरी के श्रेष्ठी प्रभूत धनसंचय का सुपुत्र था। घर में धन के अम्बार लगे थे। मेरी माता मुझ पर खूब स्नेह करती थी। मेरी पत्नी शीलवती व रूपवती थी । एक दिन नेत्र - पीड़ा हुई । मैं कराह उठा । उस समय मेरी १४० Jain Educationa International सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003697
Book TitleSachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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