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________________ तीर्थंकर महावीर द्वारा धर्म-प्रचार तीर्थंकर जीवन प्रभु महावीर की साधना साढ़े बारह वर्ष चली। उसके बाद केवलज्ञान, केवलदर्शन प्राप्त हो गया। वह सर्वज्ञ, सर्वदर्शी हो गये। उन्होंने ४२ वर्ष की आयु में चतुर्विध संघ की स्थापना की। पिछले अध्ययनों में हम वर्णन कर चुके हैं कि श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार प्रभु महावीर का पहला उपदेश पावापुरी नगरी के महासेन उद्यान में हुआ। दिगम्बर जैन परम्परा प्रथम समवसरण का स्थान राजगृही के विपुलाचल पर्वत पर मानती है। प्रभु महावीर ने अपने समवसरण में चन्दनबाला को दीक्षित कर क्रान्तिकारी कदम उठाया। इस समय के जितने भी धर्मनायक हुए हैं उनमें से किसी ने स्त्री जाति को सामाजिक व धार्मिक बराबरी का स्थान नहीं दिया। __ स्वयं महात्मा बुद्ध ने अपने शिष्य आनन्द के कहने से स्त्रियों को दीक्षित किया था। महात्मा बुद्ध मन से स्त्री जाति को साध्वी बनाने के विरोधी थे। शिष्य आनन्द ने अपने गुरु महात्मा बुद्ध के साथ लम्बे समय तक तर्क-वितर्क के बाद स्त्रियों को बद्ध-संघ में स्थान दिलाया था। इसके विपरीत प्रभु महावीर को ऐसी कोई समस्या नहीं आई। इसका कारण यह था कि जैनधर्म परम्परा में शुरू से ही प्रथम तीर्थंकर साध्वी व श्राविका को संघ में प्रमुख स्थान देते रहे। इसी परम्परा के प्रभु महावीर अन्तिम तीर्थंकर थे। इस परम्परा के अनुसार प्रभु महावीर ने जगत् के जीवों के कल्याणार्थ मोक्ष का उपदेश दिया। प्रभु महावीर अपने शिष्य शिष्याओं के साथ विहार करने लगे। पावापुरी से प्रभु महावीर सीधे राजगृही पधारे। राजा श्रेणिक और राजगृही __ मगध की राजधानी राजगृही थी जो पाँच पहाड़ों के मध्य में स्थित है। वहाँ के महाराजा श्रेणिक प्रभु महावीर के परम भक्तों में एक था। वह कशाग्रपर नगर के राजा प्रसेनजित का राजकमार था। राजा प्रसेनजित के ५०० राजकमार थे। वह प्रभु पार्श्वनाथ की परम्परा का श्रमणोपासक था। उसके रणवास में बहुत-सी रानियों का परिवार था, पर जीवन के अन्तिम क्षणों में उसने एक भील यमदण्ड की पुत्री तिलकसुन्दरी के मोह-जाल में फँसकर शादी की। तिलकसुन्दरी के पिता ने शादी से पहले यह शर्त रखी कि मेरी पुत्री से उत्पन्न पुत्र ही मगध का भावी शासक होगा। - इसी शर्त को पूरा करने के लिए उसे श्रेणिक-जैसे योग्य पुत्र को वन भेजना पड़ा। जहाँ वेणु तट के किनारे कुछ समय वह बौद्धों के आश्रम में रहा। निकट संपर्क के कारण वह बौद्ध धर्म का अनुयायी बन गया। फिर उसने सुभद्र वणिक की पुत्री नन्दा से विवाह किया। उसके यहाँ अभयकुमार-जैसा कुशाग्र बुद्धि वाला राजकुमार पैदा हुआ जो मगध का प्रधान मंत्री बना। प्रसेनजित ने अपना वचन निभाने के लिये उस भील राजकुमार को मगध का राजा बना दिया। पर इसे राजा बनाने में प्रसेनजित को प्रसन्नता नहीं हई। राजा बनते ही तिलकसुन्दरी के पुत्र ने प्रजा पर अत्याचार की परम्परा शुरू कर दी। आखिर राजा प्रसेनजित बीमार पड़ गये। श्रेणिक को ढूँढ़कर मगध का सम्राट् बना दिया गया। उस समय अभय व उसकी माता वणिक पुत्री नन्दा वेनातट में पिता के यहाँ रहे। राजा श्रेणिक की शादी गणराज्य प्रमुख राजा चेटक की पुत्री चेलना से हुई थी। राजा चेटक का नियम था कि जैनधर्मी के अतिरिक्त किसी को वह बेटी नहीं देता था। पर यह एक प्रेम-विवाह था। राजा श्रेणिक का बल, वैभव, सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र १३९ १३९ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003697
Book TitleSachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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