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________________ साधु धर्म ___ प्रभु महावीर ने कहा-“जब तक तुम संयममार्ग की ओर अग्रसर न होंगे तब तक कर्मक्षय कर मुक्ति के निकट नहीं पहुँचोगे तथा शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक कष्टों से छुटकारा नहीं प्राप्त कर सकते। संयम-पथ पर चलने से पहले सर्वप्रथम वीतराग अरिहंत सिद्ध पर श्रद्धा, निग्रंथ गुरु की उपासना व उनके द्वारा बताये धर्म पर चलना जरूरी है। फिर ही पाँच महाव्रतों की साधना संभव है। इन पाँच महाव्रतों का मन, वचन, काया के तीन योग और तीन करण से पालन करना ही साधु धर्म है। ये पाँच महाव्रत इस प्रकार हैं (१) प्राणातिपात विरमण-सूक्ष्म-स्थूल सभी प्रकार की हिंसा न स्वयं करना, न कराना, न कराने का अनुमोदन करना। (२) मृषावाद विरमण-मन, वचन, काय से असत्य भाषण करने, कराने व अनुमोदन का त्याग। (३) अदत्तादान विरमण-मन, वचन, काया से पराई वस्तु ग्रहण करने, कराने व अनुमोदन का त्याग। (४) मैथुन विरमण-मन, वचन, काया से सर्व प्रकार के मैथुन सेवन करने, कराने व अनुमोदन का त्याग। (५) परिग्रह विरमण-मन, वचन, काया से धन-धान्यादि और राग-द्वेषादि आभ्यन्तरिक परिग्रह ग्रहण करने, कराने और अनुमोदन का त्याग। इन महाव्रतों का पालन करने वाला श्रमण सात-आठ भवों में मोक्षरूपी लक्ष्मी का स्वामी बनता है। भव-बन्धन से मुक्त हो जाता है। साधु जीवन में पाँच महाव्रतों के अतिरिक्त तीन गुप्तियों, तथा पाँच समितियों का पालन जरूरी है। गृहस्थ धर्म सभी लोग संयममार्ग छोड़कर साधु बन जायें, यह असंभव है। जो लोग साधु नहीं बन सकते, जो आत्मा से सर्वविरति अंगीकार नहीं कर सकते, वह देशविरति धर्म द्वारा अपनी आत्मा की विशुद्धि कर सकते हैं। विरत संयमी 'श्राद्ध' अथवा 'श्रमणोपासक' कहलाता है। इसे आंशिक रूप से देशविरति धर्म का पालन करना होता है। इस मार्ग पर घर में रहकर चला जा सकता है। सामाजिक व्यवहार चलाया जा सकता है। यह आदर्श आचार-संहिता का आधार है। इसका वर्णन इस प्रकार कर सकते हैं-- (१) स्थूल प्राणातिपात विरमण-त्रस (चलते-फिरते) निरपराधी जीवों की हिंसा नहीं करना। (२) स्थूल मृषावाद विरमण-मोटे झूठ का त्याग। (३) स्थूल अदत्तादान विरमण-जिस वस्तु के ग्रहण करने से व्यक्ति चोर कहलाये, ऐसी मोटी चोरी का त्याग। (४) स्व-स्त्री संतोष, पर-स्त्री विरमण-पर-स्त्री गमन का त्याग ग्रहण कर स्व-स्त्री में ब्रह्मचर्य की मर्यादा रखना। (५) परिग्रह परिमाण-चल व अचल सम्पत्ति सभी प्रकार की सीमा निश्चित करना। (६) दिक् परिमाण-सभी दिशाओं में आने-जाने की सीमा का निर्धारण करना। (७) भोगोपभोग परिमाण-खान-पान, मौज, शौक व औद्योगिक प्रवृत्तियों की सीमा निर्धारित करना। (८) अनर्थदण्ड विरमण-निरर्थक प्रवृत्तियों का त्याग। सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र __ -१३५ | १३५ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003697
Book TitleSachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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