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(९) सामायिक-प्रतिदिन कम से कम मुहूर्त पर्यन्त सांसारिक प्रवृत्तियों को छोड़कर समभाव निवृत्ति मार्ग में स्थिर होना।
(१०) देशावकाशिक-स्वीकृत मर्यादा को कम करना।
(११) पौषधोपवास-अष्टमी, चतुर्दशी आदि दिनों में सांसारिक प्रवृत्तियों को छोड़कर आठ प्रहर धार्मिक जीवन बिताना।
(१२) अतिथि संविभाग-अतिथि को आहार देना। उसका हर प्रकार से ध्यान रखना। अतिथि में महाव्रती व अणुव्रती प्रमुख हैं। ___भगवान प्रभु महावीर ने इन द्वादश व्रतों का निरूपण किया। फिर जीव-अजीव आदि नवतरच, षद्रला व लेश्या का निरूपण किया। उनका उपदेश देश, काल, जाति, रंग, नस्ल की सीमा से परे समता का उपदेश था।
जो मनुष्य साधु बनने में असमर्थ है वह अपनी शारीरिक व्यवस्थानुसार इन नियमों पर चलते हुऐ आत्म-शुद्धि कर सकता है और मोक्ष के करीब पहुँच सकता है।
भगवान महावीर ने लोगों की आम भाषा में उपदेश दिया था। भगवान महावीर की देशना का बहुत प्रभाव पड़ा। बहुत से लोगों ने गृहस्थ व साधु धर्म अंगीकार किया, जिनका वर्णन हम तीर्थंकर जीवन में करेंगे।
खण्ड आकलन
इस खण्ड का आधार हमने गणी कल्याणविजय जी कृत "श्रमण भगवान महावीर" को बनाया है। कथाएँ आगमों में उपलब्ध हैं। उन्होंने भगवान महावीर के ३० साल के विवरण को चातुर्मास के हिसाब से भौगोलिक स्थिति के अनुसार तय किया है।
उनके इस आकलन को भारतीय व विदेशी सभी लेखकों ने स्वीकार किया है। किसी आगम या ग्रंथ में इन ३० वर्षों का वर्णन व्यवस्थित रूप से नहीं मिलता।
मुनि कल्याणविजय जी का परिश्रम बहुत ही सार्थक है। उनके इस अनुसंधान को काफी हद तक दिगम्बरों ने भी स्वीकार किया है।
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सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र
सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र
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