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________________ ४. यह वेद वाक्य आवश्यक टीका से लिया गया है। बृहदारण्यकोपनिषद् में यह वाक्य उपलब्ध होता है "विज्ञानघन ऐवैतेभ्यो भूतेभ्यः समुत्थाय नान्देवा विनश्यति न प्रेत्य संज्ञास्तीववे क्रीवीति होवाच ।" - याज्ञवल्क्य २२-५३५ ५. ऐसा मिलता-जुलता वाक्य बृहदारण्यक १४-४-५५ में मिलता नहीं था। एक विज्ञानमय पुरुष प्रस्तुत संदर्भ आवश्यक टीका से लिया गया है। ६. विशेषावश्यक भाष्य १६१० ७. विशेषावश्यक भाष्य १६१४ ८. विशेषावश्यक भाष्य १६५४ ९. विशेषाश्यक भाष्य १६५९ १०. विशेषाश्यक भाष्य १६६० ११. विशेषाश्यक भाष्य १६७१ १२. विशेषाश्यक भाष्य १६५० १३. विशेषाश्यक भाष्य १६५२ १४. विशेषाश्यक भाष्य १६५३ १५. विशेषाश्यक भाष्य १६५४ १६. विशेषाश्यक भाष्य १७५०-१७५८ १७. विशेषाश्यक भाष्य १७७०-१७७५ १८. इस श्रुति वाक्य का भाव सांख्यकारिका पृ. ६२ के भाव से मिलता-जुलता है "तस्मान्न वध्यते नाभि मुच्यते नाभि संसरति क्वचित् संसरति वध्यते मुच्यते व नानाश्रया प्रकृति । " १९. यह वाक्य ऋग्वेद संहिता ८/४८/३ तथा अथर्ववेद उपनिषद् में मिलता है। २०. विशेषावश्यक भाष्य १९०५.१९१० २१. विशेषावश्यक भाष्य १९४९ - १९५८ २२. यह वाक्य आवश्यकनियुक्ति से लिया गया है। २३. आवश्यक टीका में उक्त वाक्य है तैत्तिरीयोपनिषद्' १८२ में सत्यं ज्ञान मनंतंब्रह्मा प्राप्त होता है। Jain Educationa International सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र For Personal and Private Use Only १३३ www.jainelibrary.org
SR No.003697
Book TitleSachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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