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________________ इन्द्रभूति ज्ञान के अहंकार में डूबा ब्राह्मण था । इन्द्र ने कहा- “शिष्य ! बोलो क्या गाथा है ? आपको अगर मैंने अर्थ बता दिया, तो क्या मेरे शिष्य बनोगे ?” मायाधारी इन्द्र ने कहा- "हाँ! अवश्य बनूँगा।" मायाधारी इन्द्र के कहा- "मेरे गुरु अभी मौन में हैं इसलिये आपको कष्ट दे रहा हूँ। गाधा इस प्रकार है इन्द्रभूति इस गाथा को सुनते ही असमंजस में पड़ गये। ये पाँच अस्तिकाय, षट्जीवनिकाय, महाव्रत, आठ प्रवचन माता कौन-कौन-सी हैं ? " "पंचेव अत्थिकाया, छज्जीवणकाया महव्वया पंच। अट्टम पवयणमाला सहेउओ बंध मोक्खो यं ।” इन्द्रभूति ने चालाकी से काम लेते हुये कहा - "तुम मुझे अपने गुरु के पास ले चलो। मैं उन्हीं के सामने तुम्हें इस गाथा का अर्थ समझाऊँगा।” इन्द्र तो यही चाहता था कि किसी प्रकार से यह अहंकारी ब्राह्मण अपने ५०० शिष्यों सहित प्रभु महावीर के समवसरण में पहुँचे। यहाँ समवसरण के दिव्य प्रभाव से उसके मन की शंका समाप्त हो गई। वह प्रभु महावीर का शिष्य बन गया। उसके विद्यार्थी शिष्यों ने भी उसका अनुकरण किया। दीक्षा लेते ही उसे चार ज्ञान व आठ ऋद्धियाँ प्राप्त हो गई। दिगम्बर परम्परा में ग्यारह गणधरों का प्रभु महावीर का शिष्य बनने के पीछे इन्द्र की प्रेरणा है। जबकि श्वेताम्बर जैन परम्परा में पावापुरी के विशालतम यज्ञ में यह पुरोहित वर्ग इकट्ठा होता है । वहाँ महासेन चैत्य में ये ब्राह्मण लेते हैं । प्रभु महावीर ने ग्यारह गणधरों को नौ गणों का प्रमुख बनाया। प्रभु के साधु संघरूप के गण को धारण करने वाले गणधर कहलाये। इन सबका निर्वाण राज्यगृही में हुआ। ग्यारह गणधरों में गणधर इन्द्रभूति व गणधर सुधर्मा को छोड़ सब प्रभु महावीर के जीवनकाल में मोक्ष पधार गये । इधर प्रभु महावीर को केवलज्ञान प्राप्त हुआ। उधर देव - देवियों का आगमन धरती पर होने लगा । कुछ मित्र देवों ने चन्दना को प्रभु महावीर के केवलज्ञान की सूचना दी। वह भी राज्य परिवार के साथ पावापुरी पहुँच गई तो इस तरह प्रभु महावीर ने साधु-साध्वी श्रावक व श्राविकारूपी चतुर्मुखी तीर्थ की स्थापना की । चन्दनबाला को साध्वियों की प्रमुखा बनाया गया। इस प्रकार एक दा रूप में बिकी नारी को धर्म प्रमुख बनने का अवसर प्राप्त हुआ। प्रभु महावीर के प्रमुख श्रावकों में आनन्द प्रमुख श्राविकाओं में रेवती, सुलसा प्रमुख श्राविकायें थीं । थे । सन्दर्भ स्थल सूची १. महावीर चरियं ७ / गा. ४४, पृ. २५१ २. चउपन्न महापुरिस चरिय, पृ. २९९-३०३ ३. यहाँ आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि ने विशेषावश्यक भाष्य को गणधरवाद का आधार बनाया है। पर मुनि कल्याणविजय जी ने आवश्यक निर्युक्ति को आधार बनाया है। हम उसी आधार पर इस चर्चा का उल्लेख कर रहे हैं। १३२ Jain Educationa International सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003697
Book TitleSachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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