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वायुभूति-"आत्मा शरीर से अलग है। यह सिद्ध हो जाने पर भी वह शरीर के समान क्षणिक है। वह शरीर के साथ ही विनष्ट हो जाता है फिर उसको शरीर से अलग सिद्ध करने से लाभ भी क्या है ?" __महावीर इस प्रकार की शंका करना ठीक नहीं है। पूर्वजन्म का स्मरण करने वाले जीव का उसके पूर्वजन्म का शरीर विनष्ट हो जाने पर भी क्षय नहीं मान सकते। जीव का क्षय मानने पर पूर्वभव का स्मरण नहीं कहते। जैसे बाल अवस्था का स्मरण करने वाली वृद्ध की आत्मा का बाल्यकाल में सर्वथा नाश नहीं हो जाता, चूँकि वह बाल्यावस्था का स्मरण करती हुई प्रत्यक्ष दिखाई देती है। इस प्रकार जीव भी पुनर्जन्म का स्मरण करता है यह सिद्ध है।
जैसे कोई व्यक्ति विदेश यात्रा के लिये गया है वह अपने देश की बात का स्मरण करता है। इसी प्रकार पूर्वजन्म का स्मरण करने वाले भव का सर्वथा नाश नहीं मान सकते।११
चैतन्य भूतों का धर्म है और भूत रूप शरीर व चैतन्य रूप आत्मा का अभिमान है।१२
इस संशय का निवारण करते हुए भगवान महावीर ने कहा-“तुम्हारा यह संवाद उचित नहीं है। चूंकि चैतन्य केवल भूतों के समुदाय से पैदा नहीं हो सकता। वह स्वतन्त्र रूप से सत् है, क्योंकि प्रत्येक भूत में उसकी सर
सत्ता का अभाव है। जिसका प्रत्येक अवयव में अभाव हो, वह समुदाय में भी उत्पन्न नहीं हो सकता। जैसे रेत के किसी कण में यदि तैल नहीं है ते तो रेत समदाय से तेल नहीं निकल सकता। तिल समदाय से तेल निकलता है। चूंकि प्रत्येक तिल में तेल की सत्ता है। तुम्हारा यह कथन भी अयुक्त (युक्तिरहित) है कि मदिरा के प्रत्येक द्रव्य में मद अविद्यमान है। सही बात यह है कि मदिरा के प्रत्येक अंग में कम या ज्यादा मद विद्यमान है इसलिए वह समुदाय से उत्पन्न होती है।१३
___ 'मदिरा के अंग के समान प्रत्येक भूत में चैतन्य की मात्रा विद्यमान है इसलिए वह समुदाय से भी उत्पन्न हो जाता है।' यदि ऐसा मान लें तो क्या आपत्ति है ? किन्तु आपका यह कथन भी उचित नहीं है क्योंकि जैसे मदिरा के हर एक अंग-धातकीपुष्प, गुड़, द्राक्षा, गन्ने का रस आदि में मद शक्ति दिखाई देती है; उसी प्रकार प्रत्येक भूत में चैतन्य का दर्शन नहीं होता इसलिए केवल यह नहीं कहा जा सकता कि भूत समुदाय में चैतन्य उत्पन्न होता है।
मदिरा के प्रत्येक अंग में भी यदि मद शक्ति न मानें तो क्या आपत्ति है ? यदि भूतों में चैतन्य के समान मद्य के प्रत्येक अंग में मद शक्ति हो यह नियम कदापि नहीं बन सकता कि मद्य के धातकीपुष्प आदि तो कारण हैं और दूसरे पदार्थ नहीं। ऐसी अवस्था में राख, पत्थर आदि कोई भी वस्तु मद का कारण बन जायेगा और किसी भी समुदाय से मदिरा उत्पन्न हो जायेगी, किन्तु व्यवहार में भी हम देखते हैं कि ऐसा कभी नहीं होता। अतः मदिरा के हर अंग भूत पदार्थ में मद शक्ति का अस्तित्त्व मानना चाहिए।१५ ___ भगवान महावीर ने क्षणिकवाद का विरोध करते हुए कहा-“वायुभूति ! क्षणिकवाद भी अनेक दोषों से भरा हुआ है क्योंकि ज्ञान संतति का जो सामान्य रूप है वह नित्य है इसलिए उसका भी व्यवच्छेद नहीं होता। उसे ही आत्मा कहते हैं।" प्रभु महावीर ने आत्मा के विषय को आगे स्पष्ट करते हुए कहा-“वायुभूति ! आत्मा शरीर से अलग है तो वह शरीर में प्रवेश करते समय, वहाँ निकलते समय क्यों दिखाई नहीं देती?'
इसका उत्तर इतना है-“आत्मा स्वभाव से अमूर्त है और उसके साथ जो कार्मण शरीर है वह परमाणु के समान सूक्ष्म है इसलिये हमारे शरीर में प्रवेश करते समय या बाहर निकलते समय दिखलाई नहीं देती।"
वायुभूति-“अच्छा, यदि यह मान भी लें कि जड़ से चेतन की उत्पत्ति नहीं होती तो भी भूतों के सिवाय आत्मा के अस्तित्त्व का क्या प्रमाण है ?"
प्रभु महावीर- "वायुभूति ! ज्ञानी को प्रमाण की जरूरत नहीं होती। वह इसे हस्ताकमलवत् साक्षात् देखते हैं। यह कर्म नेत्र वाले जीवों के लिये पहेली है। पर वह इसे अनुमान से जान सकते हैं।
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सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र
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