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________________ प्रथम और पाँचवें गणधरों को छोड़ सभी गणधर प्रभु महावीर के जीवनकाल में मोक्ष पधार गये। यह गणधरों का संक्षिप्त परिचय है। हम गणधरों व प्रभु महावीर में हुई धर्मचर्चा की बात करेंगे क्योंकि इसी धर्मचर्चा के बाद ही धर्मतीर्थ की स्थापना हुई थी। सभी गणधर अध्यापक तो अच्छे थे, पर गुरु नहीं बन पाये थे। वे पढ़ा सकते थे, पर पढ़ते हुए जो उनके मन में शंका उत्पन्न हो चुकी थी, उसके निराकरण के लिए उन्होंने कोई प्रयत्न नहीं किया। इस शंका को निवारण न करने का कारण था उनका जातिमद। वे समझते थे ब्राह्मण को ब्रह्म ने स्वयं उत्पन्न किया है। ब्राह्मण कभी गलत नहीं हो सकता। वह त्रैलोक्य पूज्य है। वेद को पढ़ने-पढ़ाने का उसका अधिकार है। हर तरह की शिक्षा पर उसका अधिकार है। धर्मग्रन्थों की व्याख्या मनमाने ढंग से करने में वह स्वतन्त्र है। वह नये ग्रन्थ अपनी सुविधा के अनुसार लिखने के अधिकारी है। क्षत्रियों के वह प्रधानमंत्री थे। यह ब्राह्मणवाद ही था। जिसने भारत के जनमानस की आत्मा को अज्ञान के बन्धनों से इतना जकड़ रखा है कि आज तक हम ब्राह्मणवाद के विरोध में कोई शब्द निकालना पाप समझते हैं। प्रभु महावीर क्षत्रिय थे। पर उन्हें कोई भय नहीं था। वह अज्ञानतम मिटाने आये थे। उनका क्रान्तिकारी जीवन का पहला दिन ऐसा सौभाग्यशाली था कि संसार के किसी महापुरुष को ऐसा सौभाग्य नहीं मिला। प्रभु महावीर की लड़ाई ब्राह्मण के विरोध में नहीं थी। उनका संघर्ष ब्राह्मणवाद के विरोध में था। ब्राह्मणवाद की आड़ में क्षत्रिय को छोड़ सभी वर्ण न्यून रह गये थे। वैश्य भी ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता था। कृषक, मजदूर, दलित, शूद्र, स्त्री जाति की कोई पुकार सुनने वाला नहीं था। धर्म के नाम पर हिंसा का बोलबाला था। ___ वह दिन भी आया, जब एक नहीं ४,४४० ब्राह्मणों ने एक दिन ही प्रभु महावीर के चरणों में स्वयं को समर्पण कर दिया। यह क्रान्तिकारी उपदेश का प्रभाव था। ___यह क्रान्ति क्यों और कैसे घटी? इसके बारे में हम शास्त्रों के आधार पर चर्चा करेंगे। यहाँ इतना निवेदन करना चाहते हैं कि इन्हीं गणधरों में प्रथम इन्द्रभूति गौतम प्रभु महावीर के धर्मतीर्थ के प्रमुख साधु कहलाये। परन्तु आज पाँचवें गणधर सुधर्मा स्वामी की वाचना ही उपलब्ध है। आज श्वेताम्बर जैन साहित्य में गणधर सुधर्मा का महत्त्वपूर्ण स्थान है। उन्हीं की कृपा से प्रभु महावीर का उपदेश सुरक्षित रह सका। उन्होंने जो प्रभु से सुना, वह अपने शिष्य अन्तिम केवली जम्बू स्वामी को सुनाया। सभी गणधरों के मन में स्वाध्याय करते हुए कुछ शंकाओं ने जन्म ले लिया था। प्रभु महावीर ने इन शंकाओं का इन्हीं की मान्यतानुसार निराकरण किया। वे शंकायें क्या थी इसका विवरण इस प्रकार है-- (१) प्रथम गणधर इन्द्रभूति गौतम की आत्मा के बारे में शंका थी। (२) दूसरे गणधर अग्निभूति को कर्म-सिद्धान्त के प्रति शंका थी। (३) तीसरे गणधर वायुभूति को आत्मा व शरीर के बारे में शंका थी। (४) चतुर्थ गणधर व्यक्त के मन में पाँच भूत आदि तत्त्वों के प्रति शंका थी। (५) पाँचवें गणधर सधर्मा स्वामी के मन में इहलोक व परलोक के प्रति शंका थी। (६) छठे गणधर मण्डिक के मन में बंध और मोक्ष के बारे में शंका थी। (७) सातवें गणधर मौर्यपुत्र के मन में देवों के अस्तित्त्व के बारे में संदेह था। (८) आठवें गणधर अकम्पित के मन में नरक के बारे में संदेह था। (९) नौवें गणधर अचलभ्राता के मन में पुण्य व पाप तत्त्वों के बारे में संदेह था। ११२ सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003697
Book TitleSachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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