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________________ शरीर से रस खींचने के बाद वह उन्हें तीखे डंक मारते। माँस नोच लेते। खून पीते। इस पीड़ा को भगवान महावीर ने समता से सहन किया। साधनाकाल का कुछ समय प्रभु महावीर ने कर्म-निर्जरा हेतु लाढ़ देश (बंगाल क्षेत्र) की ओर प्रस्थान किया। यही प्रदेश अनार्य माना जाता था। साधु जीवनचर्या के अनुसार यहाँ घूमना अत्यन्त दुष्कर था। उस प्रांत के दो भाग थे-एक वज्र भमि तथा द्वितीय शभ्र भूमि। यह दोनों भाग उत्तर राढ व दक्षिण राढ के नाम से प्रसिद्ध थे। इन दोनों के मध्य में अजय नदी बहती थी। प्रभु महावीर ने इस क्षेत्र में विहार किया। वहाँ के उपसर्ग इतने भयंकर थे कि प्रभु महावीर के ही प्रमुख गणधर सुधर्मा ने स्वयं अपने मुख से उनका विवरण इस प्रकार किया है__प्रभु महावीर को रहने के लिए अनुकूल आवास नहीं मिला। रूखा-सूखा भोजन भी कठिनता से उपलब्ध हुआ। कुत्ते उनको दूर से देखकर ही काटने के लिए झपटते।८७ वहाँ पर ऐसे व्यक्ति विरले थे जो काटते, नौंचते हुए कुत्तों को हटाते। वहाँ अधिकांश व्यक्ति दुष्ट बुद्धि के थे। वे हटाने के स्थान पर उन कुत्तों को छुछकारकर प्रभु महावीर को काटने की प्रेरणा देते। प्रभु महावीर किसी के प्रति मन में क्षोभ न लाते। तन के प्रति उनमें किसी प्रकार का ममता भाव नहीं था। वह तो इन उपसर्गों के विकास में सहायक समझकर इन्हें सहर्ष सहते थे।८८ जैसे लड़ाई में हाथी शत्रु के तीखे वार की तनिक परवाह नहीं करते। वे हाथी तो आगे बढ़ते रहते हैं। उसी प्रकार प्रभु महावीर उपसर्गों-परीषहों की परवाह किये बिना आगे बढ़ते रहे। वहाँ (अनार्यों) क्षेत्रों में ठहरने के लिए दूर-दूर तक गाँव उपलब्ध नहीं होते थे। ऐसी स्थिति में वह भयंकर अरण्य में ठहरते थे।८९ जब वे किसी गाँव में जाते, तो गाँव के निकट पहुँचते ही गाँव के लोग बाहर निकलकर उन्हें मारने-पीटने लगते और गाँव छोड़ने को कहते।९० वे अनार्य लोग प्रभु महावीर पर दण्ड, मुष्टि, भाला, पत्थर व ढेलों से प्रहार करते और फिर प्रसन्न होकर चिढ़ाते।९१ वहाँ क्रूर मनुष्यों ने प्रभु महावीर के सुन्दर शरीर को नोंच डाला। उन पर विविध प्रकार के प्रहार किये। भयंकर परीषह उनके लिए उपस्थित किये। उन पर धूल फें की।९२ वे अनार्य लोग भगवान महावीर को ऊपर उछाल-उछालकर गेंद की तरह पटकते थे। आसन से धकेल देते, तब भी प्रभु महावीर ऐसी स्थिति में विदेह रहते थे। वह इच्छा व आकांक्षा से रहित संयम-साधना में स्थिर होकर कष्टों को शांति से सहन करते ?९३ जिस प्रकार कवच पहने हुए शूरवीर का शरीर युद्ध में अक्षत रहता है वैसे ही अचल भगवान महावीर ने अत्यंत कठोर कष्टों को सहते हुए भी अपनी संयम-साधना को अक्षत रखा।९४ __ वह समभावपूर्वक सभी उपसर्गों को अनार्य प्रदेशों में सहन करते रहे। पुनः आर्य प्रदेशों में कदम बढ़ा रहे थे कि पूर्ण कलश सीमा प्रांत पर दो तस्कर मिले। वे अनार्य प्रदेश में चोरी करके आ रहे थे, उन्होंने प्रभु महावीर को अशुभ समझकर कष्ट दिया। इन परीषहों और उपसर्गों को शांत भाव से सहन करने में समर्थ, भिक्षु-प्रतिमाओं का पालन करने वाले, धीमान, शोक और हर्ष में समभाव, सब गुणों में आगार, अतुलबली होने के कारण देवताओं ने उन्हें महावीर नाम दिया।९५ सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003697
Book TitleSachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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