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चित्र नं. १६
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गौशालक ने वैश्यायन तपस्वी को बार-बार चिढ़ाया तो उसने क्रुद्ध होकर उस पर तेजोलेश्या छोड़ दी। गौशालक “प्रभु ! बचाओ, बचाओ !” कहता हुआ भागा, उसने प्रभु की चरण-शरण ले ली।
तपस्वी ने "प्रभु जान लिया" कहकर क्षमा माँगी।
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