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________________ इधर सेठ लोहार को लेने गया। उधर चन्दना ने अपने सामने पड़े बाकुले देखे। फिर उसने सोचा-“आज तीन दिन का मेरा उपवास हो गया है कितना अच्छा हो कि किसी सुपात्र को दान देकर मैं स्वंय भोजन करूँ।" इतना सोचना था कि चन्दना की भावना अनुसार प्रभु महावीर पधार गये। इधर चन्दना के सुपात्रदान से उसके बंधन ही नहीं टूटे, बल्कि समस्त स्त्री-जाति के लिए मोक्ष का द्वार भी खुल गया। यह चन्दना ही थी कि जिसे प्रभु महावीर की प्रथम शिष्या बनने का सौभाग्य मिला। प्रभु महावीर ने इसी चन्दना को अपनी ३६,००० साध्वियों का प्रमुख बनाया। चन्दना जो पहले राजकुमारी बनी, फिर दासी बनकर प्रभु को आहार देने का सौभाग्य प्राप्त किया। अंत में प्रभु के हाथों दीक्षित होकर मोक्षमार्ग प्राप्त किया। दिगम्बर परम्परा दिगम्बर उत्तरपुराण में चन्दना की कथा दूसरे ढंग से वर्णन की गई है। उसे वैशाली-नरेश चेटक की पुत्री बताया गया है। एक दिन चन्दना उद्यान में क्रीड़ा कर रही होती है, तभी एक विद्याधर उसे उठाकर ले जाता है। पर विद्याधर भी पत्नी के भय से उसे जंगल में छोड़ देता है। वहाँ वह एक भील को प्राप्त होती है। वह चन्दना को ऋषभदत्त को बेच देता है, ऋषभदत्त की पत्नी सुभद्रा सेठ पर शंका करती है। सेठानी उसे खाने के लिये मिट्टी के सकोरे में भाजी मिला थोड़ा-सा भात देती है और क्रोधवश उसे सदा साँकल से बाँधे रखती है। आगे की कहानी श्वेताम्बर ग्रंथों के अनुसार ही है। प्रभु महावीर का अभिग्रह पूर्ण कराने के कारण उसकी हथकड़ियाँ स्वयं टूट जाती हैं, नये केश आ जाते हैं। हथकड़ियाँ आभूषणों का रूप बन जाती हैं। शील के प्रभाव से मिट्टी का बर्तन स्वर्णमय बन जाता है। भात चावलों का रूप ले लेता है। इस तरह दोनों परम्पराओं में चन्दना द्वारा प्रभु महावीर के अभिग्रह का पारणा रखने का वर्णन श्रद्धा से किया गया है। दोनों परम्पराएँ उन्हें भगवान महावीर की प्रथम साध्वी मानती हैं।। श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार वह राजा शतानीक की रानी मृगावती के यहाँ आ जाती है। देवों द्वारा प्रभु महावीर के केवलज्ञान की सूचना पाकर वह भी पावापुरी के समवसरण में दीक्षित होती है। प्रभु महावीर ने इस प्रकार साध्वी के माध्यम से समस्त स्त्री-जाति का उद्धार किया। उस समय के किसी भी महापुरुष ने स्त्री-स्वतन्त्रता के प्रति इतनी आवाज नहीं उठाई। ब्राह्मण लोगों ने तो स्त्री को वेद व संस्कारों से मक्त रखा। यहाँ तक कि बौद्ध धर्म में भी भगवान बुद्ध ने स्त्रियों को अपने संघ में स्थान अपने शिष्य आनंद के अनुरोध पर दिया। सामाजिक और धार्मिक क्षेत्र में दासों, स्त्रियों और अस्पृश्य माने जाने वाले मानवों को प्रभु महावीर ने गले लगाया। सारी मानव जाति की समानता का उदाहरण प्रस्तुत किया। ___ कौशाम्बी से विहार करके प्रभु महावीर सुमंगल, सुच्छेत्ता पालक प्रभृति क्षेत्रों को पावन करते हुए चम्पानगरी पधारे।८१ वर्षावास का समय आ चका था। प्रभु महावीर ने यह वर्षावास स्वातिदत्त ब्राह्मण की यज्ञशाला में किया। यहाँ प्रभु महावीर ने चातुर्मासिक तप किया। इस तप के प्रभाव से पूर्णभद्र और मणिभद्र यक्ष प्रभु महावीर के भक्त बन गये। वह प्रभु महावीर की सेवा में रहने लगे। स्वातिदत्त ब्राह्मण पर भी यक्षों द्वारा पूजित भगवान महावीर के तप का अच्छा प्रभाव पड़ा। उसके मन में श्रद्धा उत्पन्न हुई। वह विचार करने लगा-'देवार्य अवश्य ही कोई विशिष्ट ज्ञानी हैं।८२ सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र ९३ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003697
Book TitleSachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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