________________
प्रभु महावीर ने उड़द के बाकुले से पारणा किया। देवताओं ने 'अहोदानं अहोदानं' की घोषणा की। इस तरह प्रभु महावीर ने यह आहार एक दासी के हाथ किया।
महासाध्वी चन्दना
चन्दना से प्रभु महावीर का आहार करना दासत्व के प्रति क्रान्ति थी । श्वेताम्बर ग्रंथों में चन्दना को राजा दधिवाहन की पुत्री कहा गया है।
कथानक इस प्रकार है : कौशाम्बी के राजा शतानीक ने अचानक ही चम्पा पर आक्रमण कर दिया। दधिवाहन राजा के भय से भाग गया। शतानीक के सैनिक चंपा को लूटने लगे ।
एक सैनिक महारानी धारणी और चन्दना को लेकर भागा। सैनिक ने धारणी का शील भंग करने का प्रयत्न किया। रानी धारणी ने धर्म-संकट को पहचान कर शील भंग के भय से आत्म-हत्या कर 1
चन्दना की अवस्था छोटी थी। उसने चन्दना को एक वेश्या के पास बेच दिया । चन्दना ने वैश्या के पास जाने से इंकार कर दिया। वेश्या ने चन्दना को धन्ना सेठ के पास बेच दिया । धन्ना श्रमणोपासक था। उसने करुणावश चन्दना को उचित दाम देकर मोल ले लिया ।
उसकी पत्नी मूला बहुत शंकालु स्त्री थी । चन्दना का असली नाम वसुमति था । वह अत्यंत सुन्दर राजकुमारी थी । मूला को भय था कि मेरा पति इस सुन्दर दासी को पत्नी बना लेगा। किसी न किसी ढंग से इस दासी घर से निकालना चाहिये, ताकि मेरा जीवन सुरक्षित रह सके। मूला इसी ताक में रहने लगी कि कब मैं इस दासी को निकालूँ ।
दूसरी ओर धन्ना सेठ चन्दना को अपनी पुत्री समझता था । चन्दना भी उसे अपने पिता से ज्यादा सम्मान देती थी । दोनों में पिता-पुत्री का रिश्ता था |
जीवन चल रहा था। एक दिन की बात है कि सेठ कहीं बाहर गया हुआ था । वह वापस आया। थका-माँदा था । वह सेठजी की सेवा के लिए गर्म जल लेकर आई। सेठ चौकी पर बैठा था । चन्दना उसी समय केश स्नान करके केश सुखा रही थी। उसके लम्बे व काले केश सुखाने के लिए खुले थे।
सेठ के पाँव धोने के लिए चन्दना जमीन पर बैठी । चन्दना ने पाँव धोने शुरू किये। उसके केश उसके माथे पर गिरने लगे । सेठ ने इन केशों को उठाकर गोद में रख लिया, ताकि बाल पानी में न भीग जायें ।
सेठानी यह सब देख रही थी । सेठानी पुत्री - पिता के रिश्ते को गलत ढंग से समझ रही थी ।
सेठानी शंका से जलने - कुढ़ने लगी। उसने चन्दना को रास्ते से हटाने का निर्णय किया । आखिर एक दिन आ गया, जब सेठानी के मन की मुराद पूरी हो गई। एक दिन सेठ बाहर गया हुआ था। सेठानी ने दासी को 'बुलाकर लम्बे सुन्दर केश मुंडवा दिये। फिर सेठानी ने चन्दना को घर के भोंहरे में डाल दिया। उसने भोंहरे के आगे ताला लगा दिया। ताला लगाकर वह मायके चली गई।
तीन दिन चन्दना भोहरे में भूखी-प्यासी बैठी रही। तीसरे दिन सेठ वापस आया । वापिस आकर सेठ ने अपनी धर्मपुत्री को आवाज दी, पर कहीं भी चन्दना का पता न चला। सेठ ने घर का कोना-कोना छान मारा । चन्दना का कोई पता नहीं चल रहा था ।
आखिर वह उस भोहरे की ओर गया, जहाँ वह कैद थी। वहाँ उसे चन्दना की धीमी आवाज सुनाई दी। सेठ ने भोहरे का दरवाजा खोला। वहाँ चन्दना को पाया। चन्दना की दुर्दशा देखी । चन्दना भूखी-प्यासी थी। सेठ ने घर में भोजन की तलाश की। रसोईघर खाली था । अचानक उसकी दृष्टि घोड़ों के लिये उबले बाकुलों पर पड़ी। उसने वह बाकुले एक छाज में डालकर चन्दना को दिये। फिर वह लोहार को लेने गया, ताकि चन्दना के बन्धन काट सके ।
९२
Jain Educationa International
सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org