________________
उन - जैसा तपस्वी इस युग में कोई नहीं है। वह रोजाना घूमते रहे। पर भिक्षा नहीं ली। आज मेरे गृह आये। हाथ पसारा पर मेरे ऐसे भाग्य कहाँ ? प्रभु महावीर को आहार देने का सौभाग्य तो किसी भाग्यशाली को प्राप्त होता है। मेरी भक्ति कमी लगती है। अगर कमी न होती, तो घर पर आये प्रभु खाली हाथ क्यों लौटते ?"
दासियों ने कहा- "प्रभु महावीर गुप्त तपस्वी हैं। यह बात आज की नहीं, वह तो चार-चार मास बिना अन्न-जल ग्रहण किये तप करते हैं । उनके लिए यह नई बात नहीं है । और यह क्रम अब भी चार माह से चल रहा है।"
दासियों की बात सुनकर नन्दा और भावुक हुई । आखिर वह कौशाम्बी के मंत्री की धर्मपत्नी थी। जब अमात्य सुगुप्त घर आये, तो उसने अपने पति से विनम्र निवेदन किया- " आप कैसे महामंत्री हैं कि चार मास पूर्ण हो गये हैं, मेरे भगवान महावीर भिक्षा के लिए आते हैं, चले जाते हैं। आपकी बुद्धि किस काम की ? अगर आप प्रभु महावीर के मनोगत भावों का पता नहीं लगा सकते। आपको क्या चिंता है कि वह भोजन के लिए रोजाना निकलते हैं पता नहीं भोजन क्यों ग्रहण नहीं करते । ८०
अमात्य को प्रभु महावीर के इस तरह घूमने का तो पता था, पर उसने कभी ध्यान नहीं दिया था कि ऐसा क्यों हो रहा है ? अमात्य सुगुप्त ने अपनी पत्नी को आश्वासन दिया कि वह शीघ्र पता लगायेंगे कि प्रभु महावीर भोजन ग्रहण क्यों नहीं करते ? ऐसा यत्न करेंगे कि प्रभु महावीर के मनोभाव को जानकर उन्हें भिक्षा प्रदान करें ।
अमात्य और उसकी पत्नी की सारी बातों को विजया नाम की दासी ने सुना ।
उसने यह बात महारानी मृगावती को बताई। मृगावती दासी की बात सुनकर चिंतित हुई। मृगावती सांसारिक दृष्टि प्रभु महावीर की मौसी थी । मृगावती ने प्रभु महावीर के बिना कुछ ग्रहण किये जाने के बारे में राजा शतानीक को बताया । सम्राट् शतानीक और अमात्य सुगुप्त ने भरसक प्रयत्न किया कि प्रभु महावीर का यह अभिग्रह पूर्ण हो जाए, पर वह कुछ भी करने में असफल रहे। प्रभु महावीर का अभिग्रह अपूर्ण रहा। तब राजा शतानिक ने प्रजा को भी साधु के नियमों का ज्ञान कराया और प्रभु महावीर का अभिग्रह पूर्ण करने की सूचना दी।
पाँच मास और पच्चीस दिन बीत गये। प्रभु महावीर का क्रम इसी प्रकार चलता रहा। उनके तप तेज में कोई अंतर नहीं आया।
एक दिन अपने नियम के अनुसार भ्रमण करते हुए धन्ना श्रेष्ठी के द्वार पर पहुँचे । यह सेठ श्रमणोपासक था । यहाँ राजकुमारी चन्दना सूप में उड़द के बाकुले लिए तीन दिन की भूखी-प्यासी द्वार के बीच बैठी थी । उसका सिर धन्ना सेठ की पत्नी ने मुंडा दिया था। वह चन्दना को अपनी सौत समझती थी। वह चन्दना के हाथ-पाँव में हथकड़ियाँ पहनाकर अपने मायके चली गई।
चन्दना ने आते हुए प्रभु महावीर को देखा। उसका हृदय कमल खिल उठा। मन मोर नाचने लगा। हथकड़ियाँ और बेड़ियाँ झनझना उठीं। उसने प्रभु महावीर को दूर से आते देखा और सोचा- "मेरा धन्य भाग्य है कि मेरे भगवान मेरे पर अनुकम्पा कर यहाँ पधार रहे हैं। पर मेरे पास देने को क्या है ? उड़द के बाकुले।"
“ऐसी तुच्छ वस्तु प्रभु महावीर को दूँगी। मेरे पास दान देने को सुपात्र सामने आ रहा है, पर देने वाला पदार्थ तुच्छ
है।"
यह सोचकर चन्दना की आँखों में आँसू आ गये । उसे अपनी दासी होने का भय नहीं था । उसे भय था तो देने योग्य पदार्थ का । इस तुच्छ पदार्थ से प्रभु महावीर व्रत का पारणा करेंगे ।
इधर चन्दना की आँखों में आँसू थे। भगवान महावीर के सभी अभिग्रह पूर्ण हो चुके थे। भगवान महावीर ने हाथ आगे बढ़ाया। अश्रु भरी आँखों से प्रभु महावीर को आहार बहराया।
Jain Educationa International
सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र
For Personal and Private Use Only
९१
www.jainelibrary.org