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दूसरी बार राजपुरुषों ने फंदा डाला, पर इस बार भी वही हुआ जो पहली बार हुआ था। राजा व राजपुरुषों ने फाँसी देने वाले उपकरणों का निरीक्षण किया। पर उपकरण तो अपनी जगह सही थे। __इस प्रक्रिया को पाँच बार पुनः दुहराया गया। इस बार भी फंदा टूट गया। सात बार फंदा टूटने से राजपुरुष चकित थे।
इस बार क्षत्रिय ने अपने राजपुरुषों से सारी बात पूछी। राजपुरुषों ने सर्व सत्य बता दिया।
क्षत्रिय ने प्रभु महावीर की महानता को परख लिया। उसने सोचा-“यह मौनधारी पुरुष मृत्यु से भी नहीं डरा। यह तो कोई महान् साधक है। हमें इससे किये गए दुर्व्यवहार की क्षमा माँगनी चाहिये।"
इस प्रकार उस क्षत्रिय ने प्रभु महावीर की महानता को पहचानते हुए उन्हें सम्मानपूर्वक मुक्त कर दिया।७२
संगम प्रभु महावीर के पीछे इस प्रकार लगा हुआ था जैसे शिकार के पीछे कुत्ता। प्रभु महावीर जहाँ भी पधारते; संगम अपनी देव-शक्ति के बल पर पहले से वहाँ पहुँच जाता। प्रभु महावीर कहाँ झुकने वाले थे।
मोसली से प्रभु महावीर सिद्धार्थपुर आये। संगम ने वहाँ भी उन्हें चोरी के आरोप में पकड़वा दिया।
यहाँ घोड़े का एक व्यापारी कोशिक रहता था। वह प्रभु महावीर के गृह-त्याग की घटना का जानकार था। जब उसे पता चला कि राजपुरुषों ने प्रभु महावीर को चोर समझकर पकड़ लिया है और उन्हें शीघ्र दण्डित करने जा रहे हैं तो वह शीघ्रातिशीघ्र राजदरबार में पहुँच गया। राजा को बताया-“यह तो दिव्य पुरुष वर्द्धमान हैं। क्षत्रियकुण्डग्राम के राजा सिद्धार्थ के नन्दन हैं। जगत्-कल्याण के लिए इन्होंने गृह-त्याग किया है। इन्हें चोर मत समझो। यह तो लोगों के भले के लिये राजपाट छोड़कर संन्यासी बने हैं।"
कोशिक, जो घोड़ों का व्यापारी था, राज्यसभा में अच्छे स्थान का स्वामी था। उसका जीवन आदर्श था। आदर्श पुरुष ही महात्मा लोगों की पहचान रखते हैं। दुष्टों को दुष्टों की पहचान होती है।
राजपुरुष को कोशिक की बात का विश्वास हो गया। उन्होंने प्रभु से क्षमा माँगते हुए सम्मानपूर्वक उन्हें मुक्त कर दिया।७३
इस तरह हम देखते हैं कि भगवान महावीर ने संगम के हर उपसर्ग को हर्ष से झेलने का मन बना लिया था। यह बात आगे की घटनाओं में सिद्ध हो जाती है। ___ संगम के उपसर्ग निरंतर जारी थे। इन उपसर्गों को सहने वाले राजकुमार वर्द्धमान का शरीर, यह सोचकर हृदय काँप उठता है कि प्रभ महावीर ने लगातार यह कष्ट कैसे सहे होंगे? इन उपसर्गों से प्रभु महावीर के समय के लोगों की मनोवृत्ति का पता चलता है। ___ संगम की परीक्षाएँ अभी संपूर्ण नहीं हुई थीं। प्रभु महावीर सिद्धार्थपुर के भंयकर कष्टों को झेलते हुए ब्रज गाँव में आये। यह ब्रज गाँव मथुरा के पास पड़ने वाले गाँवों से भिन्न दिखता है। ब्रज गाँव में उस दिन कोई नगर उत्सव था। हर घर में खीर बनी हई थी। प्रभ महावीर अपनी तपस्या के पारणे के लिये भिक्षा माँगने निकले। संगम उस गाँव में पहुँच गया। उसने प्रभु महावीर के आगमन से पहले गाँव की सारी खीर को दूषित-अनेषणीय कर दिया।
प्रभु महावीर भिक्षा के लिए घर-घर गये। न लेने योग्य पदार्थ जानकर उन्होंने कोई अन्न ग्रहण नहीं किया। वह वापस जंगल में आ गये। संगम द्वारा क्षमा याचना
संसार में अनेक राजपुरुषों को मनुष्यों ने तो कष्ट दिये हैं, पर श्रमण भगवान महावीर को तो देवों ने भी कष्ट दिये हैं। छह महीने तक संगम के कष्ट जारी रहे। पहले गोशालक मनुष्य के रूप में प्रभु महावीर के लिए मुसीबत बना रहा।
सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र
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