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अल्प रह गये थे । मंजिल नजदीक थी । प्रभु महावीर अपने भविष्य को जानते थे । इसीलिये उन्होंने हर परीषह को कर्मफल मानकर सहन किया ।
प्रभु पर चोरी का आरोप
एक बार प्रभु महावीर तोसलि गाँव के उद्यान में ध्यानस्थ थे । वहाँ संगम जैन श्रमण की वेशभूषा धारण कर गाँव
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में चोरी करने गया । उसने घरों में सेंध लगाई। सेंध लगाते ही वह पकड़ा गया।
लोगों को वह कहने लगा-" - "मुझे पकड़कर क्यों दण्डित करते हो ? जिसकी आज्ञा से मैं यह कार्य करता हूँ, उस मेरे गुरु को क्यों नहीं पकड़ते ? मेरे गुरु आज ही बाहर उद्यान में तप कर रहे हैं। यह चोरी का कार्य मैं उनके लिए करता हूँ।”
संगम की बात का लोगों को सहज विश्वास हुआ। वे उद्यान में गये। वहाँ प्रभु महावीर को ध्यानस्थ देखा। उन्होंने उन्हें रस्सियों से कसकर बाँध दिया। वे गाँव की ओर आ रहे थे। तब महाभूतिल ऐन्द्रजालिक ने प्रभु वर्द्धमान को पहचान लिया । उसने लोगों को बताया - "यह पुरुष कोई चोर नहीं, ये तो सिद्धार्थ नन्दन क्षत्रियकुण्डग्राम नरेश के सुपुत्र हैं। सत्य की तलाश में इन्होंने घर-परिवार तक को छोड़ दिया है। पर - कल्याणार्थ व आत्म-कल्याणार्थ साधनारत हैं। यह कोई चोर नहीं हैं । सो इन्हें छोड़ दो।"
ऐन्द्रजालिक की बातों का लोगों पर गहरा असर हुआ। उन्होंने प्रभु महावीर से क्षमा माँगते हुए उनको छोड़ दिया। झूठी बात कहने वाले वेशधारी की तलाश की, पर उसका कोई पता नहीं चला। ७०
भगवान मोसली गाँव में
प्रभु महावीर यहाँ से मोसली गाँव पधारे। वहाँ उद्यान में ध्यानस्थ हुए। यहाँ भगवान महावीर पर तस्कर होने का आरोप लगा । राजपुरुषों ने प्रभु महावीर को पकड़ा और राज्य दरबार में पेश किया।
इसी दरबार में राजा सिद्धार्थ के मित्र सुमागध नामक राष्ट्रीय ( प्रांत का प्रमुख) बैठा था । उन्होंने प्रभु महावीर को देखकर उनका अभिवादन किया । प्रभु महावीर का परिचय राजा को दिया। राज्य परिषद् ने प्रभु महावीर को सम्मानपूर्वक मुक्त कर दिया। 99
प्रभु महावीर को फाँसी की सजा
दुष्ट संगम प्रभु महावीर को साधना से गिराने में ऐड़ी-चोटी का जोर लगा रहा था। वह कोई भी साधन नहीं छोड़ना चाहता था। प्रभु को उसने शारीरिक व मानसिक यातनाएँ दीं। प्रभु के चेहरे पर शोक की लहर न थी ।
प्रभु साधना हेतु पुनः तोसली गाँव आये । यहाँ संगम ने ऐसी काली करतूत की कि समस्त देवलोक के देव भी संगम की करतूत पर शर्मिन्दा हो गये । उसने चोरों के हथियार लाकर प्रभु महावीर के पास रख दिये। वहाँ की जनता प्रभु महावीर को तस्कर समझकर पकड़ लिया।
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उनसे परिचय पूछा गया। पर प्रभु तो मौन साधना में थे वह कुछ नहीं बोले ।
प्रश्न का उत्तर न मिलने पर तोसली के क्षत्रिय ने प्रभु महावीर को भेषधारी श्रमण चोर मान लिया। उसने प्रभु महावीर को फाँसी की सजा सुनाई।
प्रभु के गले में फंदा डाला गया। सत्य को फाँसी देने की चेष्टा थी । पर सत्य सत्य था । फाँसी के बाद ज्यों ही नीचे का तख्ता सरकाया गया, तत्काल फंदा टूट गया।
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सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र
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