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________________ सम्पादकीय दर्शन बुद्धि का विषय है, ज्ञान आत्मा का विषय है। दर्शन चिन्तन की गहराई में उतरता है, जीव और जगत् की पहेलियाँ सुलझाता है, जबकि ज्ञान जीवन से मुखरित होकर चरित्र बनता है और जीवन को श्रेष्ठता तथा पवित्रता के शिखर पर पहुँचाता है। त भगवान महावीर केवल एक महान दार्शनिक ही नहीं थे, वे गहरे ज्ञानी - आत्मज्ञानी थे। उनका ज्ञान जीवन के प्रत्येक कोण को स्पर्श करने वाला, उसका परिष्कार करने वाला है और जीवन को पारदर्शिता प्रदान करने वाला था । उन्होंने जो कुछ कहा, प्रतिपादन किया, वह केवल चिन्तन का परिणाम नहीं था, किन्तु जीवन का जिया हुआ गहरा अखण्ड सत्य था। उसमें जीवंतता थी, प्राणवत्ता थी और एक प्रखर तेजस्विता थी। दूसरों की अनुभूति को आत्मसात् करके स्वयं की अनुभूति बनाई थी और वही अनुभूति अभिव्यक्ति बनी। इसलिए उनकी वाणी में दीर्घकालीन साधना का अनुभव मुखरित था । जीव मात्र की भावनाओं, संवेदनाओं और जीजिविषाओं का स्पन्दन था उसमें, इसलिए वह जीव मात्र के कल्याण और सुख-शान्ति का निमित्त बनी। मेरी पूज्य गुरुणीवर्या साध्वी रत्न श्री सुधाजी म. की बहुत वर्षों से भावना थी कि भगवान महावीर के साधनामय और परोपकार परायण जीवन की घटनाओं का सरल और सहज रूप में लिखकर सभी के लिए प्रस्तुत किया जाय । २५००वीं महावीर निर्वाण शताब्दी वर्ष पर पूज्य महागुरुणी साध्वी रत्न उपप्रवर्तिनी श्री स्वर्णकान्ता जी म. ने भी इस विषय में दो-तीन बार भाई रवीन्द्र जैन व भाई पुरुषोत्तम जैन को प्रेरणा दी और अपनी अन्तर इच्छा आशीर्वादरूप में व्यक्त की, कि महातपोधनी श्रमण श्रेष्ठ भगवान महावीर का जीवन चरित्र लिखें। पूज्य महागुरुणी जी की भावना को ग्रहण कर प्रेरक शब्दों की प्रेरणा से स्फुरणा प्राप्त कर श्री रवीन्द्र जैन व श्री पुरुषोत्तम जैन ने भगवान महावीर का सम्पूर्ण जीवन वृत्त लिपिबद्ध किया। उन्होंने अनेक ग्रंथों का परिशीलन किया और फिर अपना चिन्तन साथ में जोड़ते हुए उसका लेखन भी किया। पूज्य गुरुणी वर्या की प्रेरणा का ही सुपरिणाम आपके हाथों में है । प्रस्तुत ग्रंथ के लेखक हमारे धर्मभ्राता हैं, लगभग ३० वर्षों से जैन साहित्य के सेवा में कार्यरत हैं । गुरुणी की प्रेरणा से भाई पुरुषोत्तम जैन व भाई रविन्द्र जैन ने हिन्दी व पंजाबी भाषा में जैनधर्म पर ५० ज्यादा ग्रंथ लिखे हैं। पंजाबी भाषा के यह लेखक, अनुवादक, टीकाकार, कथाकार हैं, जिन्होंने जैन जगत को पंजाबी लोगों तक पहुँचाया है। दोनों भ्राताओं ने गुरुणी जी की प्रेरमा से जैन आगमों पर पंजाबी टीकायों है, जिनमें अधिकतर प्रकाशित हो चुकी हैं। दोनों ने पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला में जैन चेयर, आचार्य श्री आत्माराम जैन भाषण माला व संस्कृत आवार्ड की स्थापना की है। मेरे दोनों भ्राताओं ने १० वर्षों से गुरुणी जी की प्रेरणा से प्रस्तुत ग्रंथ बड़ी लगन व मेहनत से तैयार किया है। मैं स्वयं को सौभाग्यशाली समझती हूँ कि मुझे ऐसे महान ग्रंथ का संपादन करने का अवसर मिला है। Jain Educationa International यह वर्ष प्रभु महावीर के २६०० वें साला जन्म जयन्ती के रूप विश्व भर में मनाया जा रहा है। इस अवसर पर समिति ने दो कार्यों को अपने हाथों में लिया है - (१) आदिश्वर धाम में साध्वी स्वर्णा जैन पुस्तकालय और ( २ ) प्रस्तुत ७ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003697
Book TitleSachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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