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________________ ग्रंथ सचित्र श्रमण भगवान महावीर चारित्र। गुरुणी जी के आशीर्वाद से दोनों कार्य सम्पन्न होने के करीब हैं। इसके अतिरिक्त यह अनेकों पंजाबी जैन साहित्य की गतिविधियाँ जारी हैं। दोनों का भाषा विभाग पंजाब द्वारा सम्मान हो चुका है। इससे पहले राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह जी, इन्हें श्रमणोपासक पद से विभूषित कर चुके हैं। इनकी साहित्यक व सामाजिक गतिविधियाँ सतत जारी हैं। भविष्य में यह देव, गुरु व धर्मों की भक्ति कर उनके आशीर्वाद प्राप्त करते रहेंगे, यही मेरी शुभकामना है। प्रस्तुत ग्रंथ में उन्होंने कितना श्रम किया है, यह भूमिका से पता लग जाता है। इस ग्रंथ में उन्होंने जैनधर्म के दोनों सम्प्रदायों की मान्यताओं का पूर्ण ध्यान रखा है और कोशिश की गई है, कोई ऐसी बात न लिखी जाए, जिससे किसी परम्परा के विरुद्ध हो। अपनी तुच्छ बुद्धि के अनुसार मैंने जो कुछ संशोधन किया है, वह संतोष और समाधान हेतु ही किया है और इसको सजाने संवारने तथा सुन्दर चित्रों को संयोजित करके एक परिपूर्ण पुस्तक स्वरूप प्रदान करने में भाई राजेश जी सराना ने भी बहत श्रम किया है। सबके श्रम का. सबकी सदभावना का यह सफल सचित्र भगवान महावीर का जीवन दर्शन है। इस कार्य को मुझे सौंपने के लिए मेरी गुरुणी ने योग्य समझा, इसके लिए नतमस्तक उनको आभार प्रगट करती हूँ। कल्पसूत्र के अन्तर्गत भ. महावीर जीवन विषयक चित्र प्राप्त कराने में उपप्रवर्तक वाणी भूषण श्री अमर मुनि जी म. ने जो आत्मीय अनुग्रह प्रदान किया है वह मेरे लिए उत्साहवर्धक आशीर्वाद रूप है। भगवान महावीर की २६००वीं जन्म जयन्ती वर्ष के अवसर पर हमारी एक विनम्र श्रद्धांजलि उस परम पुरुष के चरणों में है। मुझे विश्वास है, वीतराग देव का यह तपोमय दिव्य जीवन और उनके जन कल्याणकारी उपदेश, अध्यात्म रस भरी तत्त्व चर्चाएँ हमारे अन्तःकरण को सदा पवित्रता तथा श्रेष्ठता के पथ पर बढ़ाने में सम्बल बनेगा। संपादन कार्य में अगर कोई त्रुटि रह गई हो तो मैं समस्त श्रीसंघ से क्षमायाचना करती हूँ। एक बार मैं पुनः अपनी गुरुणी व इस ग्रंथ की प्रेरिका साध्वी सुधा जी म. का आभार प्रकट करती हूँ। दोनों धर्म भ्राताओं को इस कार्य के लिए साधुवाद देती हूँ। जैन स्थानक -साध्वी स्मृति अंबाला शहर (एम.ए., पी-एच.डी.) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003697
Book TitleSachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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