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________________ तेजोलेश्या व निमित्तशास्त्र के कारण गोशालक का प्रभाव इतना बढ़ा कि उसे मानने वालों की संख्या करोड़ों में पहुँच गई। वह साधारण भिक्षु से अब एक धर्माचार्य के रूप में प्रतिष्ठित था।५९ अपने आजीवक सम्प्रदाय का वह तीर्थंकर कहलाता था। उसका मुख्य केन्द्र श्रावस्ती हालाहला कुम्हारिन का घर बन गया। भगवतीसूत्र के १५वें शतक में आजीवक सम्प्रदाय के भिक्षुओं का रहन-सहन व गोशालक के जीवन का अन्तिम काल का वर्णन आया है, जिसका वर्णन आगे होगा। इतना जरूर है कि वह भगवान महावीर के तप के १०वें वर्ष में स्वतन्त्र विचरने लगा। उसके सम्प्रदाय को कई राजकुमारों ने भी अपनाया, पर साधारणतः निम्न कहा जाने वाला वर्ग ही उसका उपासक था। उपासकदशांगसूत्र में देवता को भी गोशालक मत का प्रशंसक दिखाया गया है, जो सद्दालपुत्र जैसे श्रावक को प्रभावित करता है। सिद्धार्थपुर से भगवान वैशाली पधारे। एक दिन वैशाली के बाहर ध्यान लगाये खड़े थे। उस समय नगर के बालक जंगल में खेलने आ गये। उन्होंने प्रभु को पिशाच समझा। वह प्रभु को भिन्न-भिन्न ढंगों से सताने लगे। इसी समय पिता राजा सिद्धार्थ का मित्र गणराज शंख भी अचानक उस जंगल में आ गया। उन्होंने बालकों को फटकार लगाई और जंगल से भगा दिया।६० प्रभु का नौका विहार चोराक सन्निवेश से प्रभु वैशाली पधारे थे। वैशाली से आप वाणिज्यग्राम पधारे। बीच में गण्डकी नदी पड़ती थी। भगवान महावीर ने उसे नौका द्वारा पार किया। उसे पार करके किनारे पहुँचे। नाविक ने किराया माँगा। प्रभु महावीर मौन रहे। नाविक को गुस्सा आ गया। उसने प्रभु को गर्म रेत पर खड़ा पर दिया। संयोगवश उसी समय शंखराज का भांजा “चित्र' जो राजदूत बनकर कहीं जा रहा था, वहाँ आ गया। उसने नाविक को प्रभु का परिचय देकर छुड़ाया।६१ भगवान महावीर वहाँ से वाणिज्यग्राम पहुँचे। वाणिज्यग्राम में एक १२ व्रती श्रावक आनन्द रहता था। उसे उसी समय अवधिज्ञान की प्राप्ति हुई थी। वह महावीर के चरणों में उपस्थित हुआ। उसने प्रभु से कहा-“भगवन् ! आपको थोड़े ही समय में केवलज्ञान व केवलदर्शन उत्पन्न होगा।"६२ आचार्य देवेन्द्र मुनि जी का कहना है-“यह आनन्द, उपासकदशांगसूत्र के प्रथम श्रावक आनन्द से भिन्न है, हालांकि गाँव व नाम तो एक है। अवधिज्ञान की बात वहाँ भी है। पर वह आनन्द तो प्रभु महावीर के तीर्थंकर जीवन में आया था। उस आनन्द ने तो प्रभु महावीर से १२ व्रत ग्रहण किये थे। अवधिज्ञान होने पर गणधर गौतम का संशय दूर किया। इस आनन्द का वर्णन मूल सूत्र में है। वैसे भी आनन्द नाम के कई श्रावकों का वर्णन शास्त्रों में उपलब्ध है। ___ वाणिज्यग्राम से प्रभु महावीर सीधे श्रावस्ती नगरी पधारे। १० वर्षावास. वहीं सम्पन्न हुए। वहां विभिन्न प्रकार की तप व साधनाओं की क्रियाएँ सम्पन्न की।६३ ग्यारहवाँ वर्ष प्रभु महावीर की साधना का यह वर्ष बड़ा ही रोमांचकारी व दिल को हिला देने वाली घटनाओं से भरा पड़ा है। वर्षाकाल समाप्त होते ही प्रभु महावीर स्वतन्त्र भ्रमण के लिये सानुलद्वीप सन्निवेश पधारे। भद्रा, महाभद्रा व सर्वतोभद्रा प्रतिमाएँ नामक तप की आराधना की।६४ |८० - सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003697
Book TitleSachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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