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________________ चारों दिशाओं में चार प्रहर तक कायोत्सर्ग करना भद्र प्रतिमा है।६५ इस प्रतिमा की आराधना करने वाला प्रथम दिन पूर्व की ओर मुख कर कायोत्सर्ग करता है। रात्रि को दक्षिण दिशा की ओर मुख कर कायोत्सर्ग ध्यान लगाता है। दूसरे दिन पश्चिम दिशा की ओर मुख कर कायोत्सर्ग करता है। रात्रि को उत्तर की ओर मुख कर कायोत्सर्ग तप करता है। भगवान ने भद्र प्रतिमा के पश्चात ही महाभद्र प्रतिमा की आराधना की। उसमें चारों दिशाओं में एक रात्रि का कायोत्सर्ग किया जाता है। भगवान महावीर ने चार अहोरात्रि में इस तप की आराधना की।६६ इसके पश्चात् सर्वतोभद्र में १० दिन-रात्रि लगते हैं। इस प्रतिमा में १० दिशाओं की ओर मुख करके कायोत्सर्ग तप किया जाता है। इस प्रकार भगवान ने १६ दिन-रात्रि में सतत ध्यान कर उपवास के साथ इन प्रतिमाओं की आराधना की।६७ तप की समाप्ति पर आप तप के पारणे हेतु आनंद गाथापति के यहाँ पधारे। आनंद की एक दासी, जिसका नाम बहुला था, बचा-खुचा अन्न फेंकने बाहर आ रही थी। सामने प्रभु महावीर आ गये। दासी ने पूछा-“भिक्षु ! क्या इच्छा है, बताओ?' प्रभु ने दोनों हाथ पसार दिये। दासी समझ गई कि यह भिक्षु भिक्षा की याचना कर रहा है। उसने बचा खुचा अन्न भक्तिपूर्वक प्रभु के हाथों में रख दिया। सुपात्रदान से देवों ने जय-जयकार की। प्रभु महावीर को अपनी साधनाकाल में कै सा भोजन मिला, यह इसका उदाहरण जो है। सानुलद्विप से भगवान महावीर ने दृढ़ भूमि की तरफ विहार किया। उस नगर के बाहर स्थित पोलास चैत्य में अट्ठम तप कर रातभर एक अचित्त पुद्गल पर निर्निमेष दृष्टि से ध्यान किया। भगवान महावीर की इस निर्मल दृष्टि और ध्यान से स्वर्ग का इन्द्र बहुत प्रभावित हुआ। संगम द्वारा उपसर्ग स्वर्ग में देवों की सभा लगी हुई थी। देवाधिदेव इन्द्र अपने सिंहासन पर विराजमान थे। उन्होंने प्रभु के ध्यान की प्रशंसा करते हुए कहा- "ध्यान और धैर्य में भगवान महावीर का कोई मुकाबला नहीं कर सकता। मनुष्य तो एक तरफ, किसी देव में इतनी शक्ति नहीं कि प्रभु महावीर को उनकी साधना व ध्यानमार्ग से गिरा सके।" इन्द्र ने यह प्रशंसा देव-सभा में की। उस सभा में एक संगम नामक देव भी बैठा हुआ था। उससे प्रभु की यह प्रशंसा सहन न हुई। वह सोचने लगा-'इन्द्र ने प्रभु महावीर की प्रशंसा कर समस्त देवताओं का अपमान किया है। मैं अभी धरती पर जाता हूँ और वर्द्धमान महावीर को उनके ध्यान से गिराकर इन्द्र को झूठा सिद्ध करूँगा। आखिरकार मनुष्य चाहे कितना शक्तिशाली हो वह देवताओं की शक्ति के आगे टिक नहीं सकता। मैं अभी जाकर उन्हें ध्यान से पथभ्रष्ट करता हूँ।' यह प्रतिज्ञा कर वह पोलास चैत्य में आया। प्रभु को ध्यान से विचलित करने के लिए विभिन्न प्रकार के कष्ट देने लगा। उसने प्रभु महावीर को एक रात्रि में २० उपसर्ग दिये जिनका विवरण दिल हिला देने वाला है। __ संगम का प्रभु के जीवन में आगमन काफी रुद्र-कष्टकारी रहा। दिगम्बर परम्पर में भी एक देवता प्रभु महावीर को उज्जैनी के शमशान में कष्ट देता है। पर श्वेताम्बर जैन परम्परा में यह देव प्रभु को निरन्तर छह महीने कष्ट देता है। इन कष्टों का विवरण हम निम्न पंक्तियों में करेंगे संगम ने प्रभु महावीर को इतने भयानक उपसर्ग दिये, जो एक महावीर ही सहन कर सकता है। साधारण मानव तो इन उपसर्गों की कल्पना भी नहीं कर सकता। संगम के उपसर्ग प्रभु के कर्मों की निर्जरा करने में सहायक बने। आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि जी ने-'महावीर : एक अनुशीलन' नामक ग्रंथ में इन उपसर्गों पर अच्छा प्रकाश डाला है। वह पृष्ठ ३३२ से ३३४ पर लिखते हैं । सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र ८१ ८१ । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003697
Book TitleSachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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