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श्रावस्ती में शिवदत्त ब्राह्मण की पत्नी ने मृत बालक के रुधिर से खीर बनाई थी। उसने वह खीर गोशालक को दी। गोशालक ने वह अपवित्र खीर खाई। प्रभु ने गोशालक को इस मूर्खता के प्रति सावधान किया। गोशालक के मन में शंका थी। प्रभु तो सर्वज्ञ थे। कुछ ही समय के बाद गोशालक ने वमन किया। वमन में वे सब वस्तुएँ देखीं, जो प्रभु ने बताई थीं। इस बात को देखकर गोशालक का नियतिवाद पर विश्वास और दृढ़ हो गया।५५
श्रावस्ती से विहार कर प्रभु हलिंदुग गाँव पधारे। गाँव के समीप हलिंदुग नामक विराट वृक्ष था। भगवान ने उसी वृक्ष के नीचे ध्यान लगाया।
उधर अन्य यात्रियों ने भी वहाँ निवास किया था। उन्होंने सर्दी से बचने के लिए आग जलाई। सूर्योदय के समय इन यात्रियों ने वहाँ से प्रस्थान किया। वह आग धीरे-धीरे प्रभु की ओर बढ़ने लगी। ___ गोशालक कायरता दिखाता हुआ भाग खड़ा हुआ। प्रभु तो ध्यानस्थ थे। बाहर की घटनाओं से अनजान थे। वह तो आत्मभाव में डूब चुके थे। जिसे आत्मा की चिन्ता है उसके लिए शरीर की कीमत कुछ नहीं रह जाती। आग हवा की सहायता से आगे बढ़ी। उसने प्रभु महावीर के कोमल शरीर को झुलसा दिया। उनके पाँव बुरी तरह झुलस गये।
दोपहर को प्रभु ने वहाँ से नांगला गाँव की ओर प्रस्थान किया। प्रभु बलदेव के मन्दिर में ध्यानस्थ हुए। नांगला से चलकर आवर्त गाँव पधारे, वहाँ बलदेव के मन्दिर में ध्यान लगाया।५६
आवर्त से विचरण करते हुए भगवान व गोशालक चौराक सन्निवेश होते हुए कलंबुका सन्निवेश पधारे। कलंबुका के अधिकारी मेघ और कालहस्ती जागीरदार थे, पर वे दोनों डाके भी डालते थे। जिस समय प्रभु महावीर पहुँचे, कालहस्ती अपने गिरोह के साथ डाका डालने जा रहा था।
उसने परदेशी भिक्षु को देखा फिर पूछा- “तुम कौन हो?' दोनों ने ही कोई उत्तर नहीं दिया। पहले कालहस्ती ने उन्हें पीटा, फिर दोनों को अपने भाई मेघ के पास भेज दिया। दोनों को गुप्तचर समझा।
मेघ ने महावीर को गृहस्थ अवस्था में एक बार क्षत्रियकुण्डग्राम में देखा था। उसने प्रभु को पहचान लिया। प्रभु को बन्धन-मुक्त किया। फिर क्षमा माँगते हुए कहने लगा-"प्रभु ! मेरे भाई से यह अपराध अज्ञानतावश हुआ है।"५७
प्रभु अब अनार्य देश में अपने कर्मों को खपाने के लिए भ्रमण कर रहे थे। प्रभु के कर्मों का भुगतान काफी शेष था। प्रभु जानते थे कि मुझे अर्हत् बनने से पहले इन कर्मों से मुक्ति पानी है। इसलिए वह अनार्य देशों में विचरण करने लगे। ये क्षेत्र आधुनिक बंगाल, बंगला देश, बिहार, उड़ीसा में पड़ते थे। 'अनार्य देश में कर्मनिर्जरा में अधिक सहायता मिलेगी।' यह सोचकर आपने राढ़ (लाढ़) भूमि की ओर विहार किया। ___ यह प्रदेश उपसर्ग व कष्टों से भरा पड़ा था। अनार्य लोग प्रभु को विभिन्न ढंग से कष्ट देते थे। उनके नग्न शरीर को देखकर लोग उनके पीछे कुत्ते लगा देते। कभी प्रभु के सुन्दर शरीर को देखकर वहाँ की स्त्रियाँ आसक्त हो जातीं। वे प्रभु से कामभोग की याचना करतीं। उन्हें भयंकर मच्छर सताते। भिक्षा मिलने का तो वहाँ प्रश्न ही नहीं था। श्री आचारांगसूत्र में इसका विस्तृत वर्णन किया गया है।
इन अनार्य लोगों की अवहेलना, निन्दा, तर्जना और ताड़ना आदि अनेक उपसर्गों को सहते आपने अपनी कर्मनिर्जरा की प्रक्रिया शुरू की। यह समय दिल हिला देने वाले कष्टों से भरा पड़ा था। आदिवासी उन्हें नंगा देखकर डण्डों से पीटते थे।
भगवान राढ (लाढ) भमि से वापस आ रहे थे। उसी की सीमा प्रदेश में पर्ण कलश नामक अनार्य गाँव से निकलकर आर्य देश की सीमा में जा रहे थे। रास्ते में दो चोर मिले, जो अनार्य देश में चोरी करने जा रहे थे। भगवान के दर्शन
सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र
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