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________________ चोराक सनिवेश का उपसर्ग प्रभु गोशालक को समझाकर चोराक सन्निवेश पधारे। इस राज्य में तस्करी चरम सीमा पर थी। इसी कारण प्रहरी को सावधान रहना पड़ता था। आरक्षकों ने जब दो नये आगन्तुको को आते देखा तो पूछताछ की। प्रभु साधना के कारण मौन व्रत में थे। उन लोगों ने प्रभु को गुप्तचर समझकर बहुत शारीरिक यातनाएँ दीं; प्रभु साधना के कारण चुप थे। पर साधना तो साधना है, वह बेकार नहीं जाती। जब वह प्रभु को यातनाएँ दे रहे थे, तो उस जंगल में भ्रमण करती सोमा और जयन्ती परिव्राजिकाएँ आ पहुँचीं। वे दोनों उत्पल ज्योतिषी की बहनें थीं। उन्हें ज्ञात हुआ कि ये लोग अज्ञानतावश सिद्धार्थनन्दन को गुप्तचर समझ रहे हैं, तो तेजी से आगे बढ़ी। उस स्थान पर आईं, जहाँ सैनिक प्रभु को यातनाएँ दे रहे थे। उन्होंने आते ही सैनिकों को रोका और कहा-“यह तो क्षत्रियकुण्डग्राम के राजकुमार वर्द्धमान हैं, जो आत्म-साधना के लिए गृह त्यागकर सत्य की तलाश कर रहे हैं।' सिपाहियों ने प्रभु को मुक्त कर दिया और अपनी अज्ञानता के लिए क्षमा माँगी।५३ ___ चोराक सन्निवेश से विहार कर प्रभु पृष्ठनंदा की ओर पधारे। यहाँ उन्होंने चतुर्थ चातुर्मास सम्पन्न किया। चातुर्मास के समय उन्होंने विभिन्न प्रकार के आसन, तप व ध्यान किए। चार महीने आहार का त्याग किया।५४ पाँचवाँ वर्ष वर्षावास समाप्त होने पर भगवान महावीर "कयंगला' नगरी में पधारे। वहाँ दरिद्रथेट नामधारी पाषंडस्थ लोग रहते थे। उनका अपना देवालय था। ये लोग पत्नी व सम्पत्ति के साथ रहते थे। भगवान ने एक रात्रि इसी स्थान पर व्यतीत करने का निश्चय किया। उस रात्रि इन लोगों का कोई महोत्सव था। नृत्य-गायन हो रहा था। बाहर कड़ाके की ठण्ड पड़ रही थी। इस कड़कड़ाती ठण्ड की परवाह किये बिना प्रभु ध्यानस्थ खड़े थे। इधर नाच-गाना चल रहा था। गोशालक भी अपने स्वभाव के अनुसार नृत्य-गायन देख रहा था। यह उन लोगों का धार्मिक नृत्य था। गोशालक ने नाचते स्त्री-पुरुषों को देखा और कहा-“यह कैसा धर्म है, जिसमें स्त्री-पुरुष निर्लज्ज होकर नाच रहे हैं ?' लोगों ने उसे प्रभ महावीर का शिष्य समझकर स्थान दिया। जब वह उन्हीं का अपमान करने लगा, तो लोगों ने अन्दर से पकड़कर उसे बाहर जंगल में फेंक दिया। वह ठण्ड से ठिठुर रहा था। फिर वह बोला- “संसार में सत्य बोलने की भी सजा मिल रही है।'' उन लोगों को उस पर दया आई। लोग सोचने लगे-'यह देवार्य प्रभु महावीर का शिष्य है। प्रभु का सेवक है। इससे कोई अचानक भूल हो गई है, चलो, जाने दो। इसे पुनः अन्दर बुला लो।' ___ लोगों ने गोशालक को अन्दर बुला लिया। आदत से लाचार गोशालक पुनः उसी हरकत पर उतर आया और वह अपनी मूर्खतापूर्ण बातें दोहराने लगा। इसकी कीमत गोशालक को तत्काल चुकानी पड़ी। पहले कुछ युवकों ने उसे पीटा। वृद्धों ने युवकों को समझाकर गोशालक की जान बचाई। वृद्धों ने कहा-“हमें इस मूर्ख की बातों की ओर ध्यान न देकर अपना अनुष्ठान जारी रखना चाहिए। गीत और संगीत की आवाज इतनी ऊँची करो कि इस भिक्षु की आवाज ही गुम हो जाये।" __नवयुवकों को बुजुर्गों की बात अँच गई। गीत, संगीत जोर-शोर से पुनः चला। गोशालक की ओर किसी ने ध्यान न दिया। बाजे-गाजे के स्वर में गोशालक का स्वर किसी को सुनाई न दिया। अगली सुबह प्रभु वहाँ से विहार कर श्रावस्ती पधारे। नगर के बाहर कायोत्सर्ग तप किया। | ७४ ७४ सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003697
Book TitleSachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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