SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 119
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ठीक है सांसारिक पुरुष कभी भी वर्तमान से संतुष्ट नहीं हो पाते हैं। इसी तरह के स्वभाव का स्वामी पुष्य ज्योतिषी था। वह रेत में छपे, प्रभु के चरण-चिन्हों को खोजता-खोजता प्रभु महावीर तक आ पहुँचा। पर वहाँ प्रभु महावीरजैसा निर्ग्रन्थ भिक्षु देखा। उसे अपने ज्ञान-ज्योतिष पर शंका हुई। उसे इतना गुस्सा आया कि वह अपने ग्रन्थों को फाड़ने ही वाला था कि तत्काल इन्द्र प्रकट हुए और ज्योतिषी को बताया-“तुम जिसे भिक्षु कहते हो सचमुच वे ही धर्म-चक्रवर्ती हैं जिनके सामने सारे चक्रवर्तियों के शीश झुकेंगे। तुम्हारा शास्त्र सत्य है।"४५ मंखलिपुत्र गोशालक से भेंट दूसरा वर्ष प्रभु नगर-नगर, गाँव-गाँव घूमकर ध्यान लगाते। कष्ट सहते। इस तरह दूसरे वर्ष का वर्षावास आ गया। प्रभु ने यह वर्षावास राजगृह के एक भाग नालंदा में करने का निश्चय किया। यहीं उनकी भेंट आजीवक सम्प्रदाय के एक श्रमण मंखलिपुत्र गोशालक से हुई। इतिहास दृष्टि से गोशालक का वर्णन जितना जैन ग्रन्थों में विस्तृत रूप से मिलता है अन्यत्र नहीं मिलता। इसका कारण यह है कि वह साधनाकाल में प्रभु का साथी रहा था। अपने विपरीत स्वभाव के कारण वह प्रभु के लिए कष्ट का कारण बना। प्रभु से ज्ञान प्राप्त किया। शक्तियाँ प्राप्त की। पर वह कुपात्र निकला। गोशालक का मत नियतिवादी (भाग्यवादी) था। गोशालक भगवान बुद्ध से मिला था। पर वह जैन श्रमणों का कट्टर दुश्मन था। इसकी दुश्मनी का उत्तर प्रभु ने क्षमा से दिया। नालंदा में एक जुलाहे की तंतुशाला (कपड़े बुनने का कारखाना) में प्रभु ने यह वर्षावास किया। वहाँ मंखलि-पुत्र गोशालक वर्षावास के लिए पहले से टिका हुआ था। उसने प्रभु की तपस्या को करीब से देखा। वह प्रभु के क्रिया-कलापों व मौन-साधना से आकर्षित हुआ। एक बार प्रभु ने मासखमण की तपस्या को सम्पन्न किया, वह भिक्षा के लिए पधारे। जिस श्रावक ने उन्हें भिक्षा दी, उसके घर पाँच प्रकार के दिव्य प्रकट हुए। देवदुन्दुभि बजी। रत्नों की वर्षा हुई। वह सोचने लगा-'सचमुच ! इस श्रमण की तपस्या महान् है जिसके तप के आगे देवता भी नमन करते हैं। मुझे भी इनका शिष्यत्व ग्रहण करना चाहिए।' उसने प्रभु से प्रार्थना की। प्रभु मौन रहे। प्रभु ने इस वर्षावास में एक-एक मास का तप किया।४६ जब वर्षावास समाप्त हो गया, तो गोशालक भिक्षा के लिए जाने से पहले पूछने लगा-"भन्ते ! आज मुझे भिक्षा में क्या प्राप्त होगा?" प्रभु ने उत्तर दिया-“कोदों का बासी तन्दुल, खट्टी छाछ व खोटा सिक्का।" गोशालक प्रभु का वचन झुठलाने उच्च घरों में गया। पर किसी ने भी उसे भिक्षा न दी। फिर वह गरीबों की बस्ती में गया तो एक लुहार ने उसे खट्टी लस्सी, बासी भात व दक्षिणा में खोटा सिक्का दिया। यही वह घटना थी जिसके कारण मंखलिपुत्र गोशालक नियतिवाद की ओर प्रभावित हुआ। वह सोचने लगा-'जो होना होता है, वह होकर रहता है और सब कुछ होना पूर्व से निश्चित है।' यह सिद्धान्त भाग्यवादी सिद्धान्त है। भगवतीसूत्र में स्पष्टतः गोशालक के जन्म व घटनाओं का वर्णन इस प्रकार है गोशालक का पिता मंख था। वह चित्र दिखाकर भिक्षा माँगता था। गाँव गाँव घूमता था। एक बार वह एक गायशाला में ठहरा हुआ था। वहीं उसकी प्रसूता ने पुत्र को जन्म दिया, जो आगे चलकर गोशालक नाम से प्रसिद्ध हुआ। वह ज्योतिषशास्त्र का अच्छा ज्ञाता था।" सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र ७१ | ७१ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003697
Book TitleSachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy