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इस घटना से जहाँ चण्डकौशिक के जीव को सद्गति मिली, वहाँ कनखल वासियों को भी नागराज के आतंक से मुक्ति मिली। अब वाचाला के दोनों मार्ग जनसाधारण के लिए खुले थे। इस तरह प्रभु महावीर ने चण्डकौशिक नाग का उद्धार किया।
वहाँ से चलकर प्रभु उत्तर वाचाला की ओर गये। वहां नागसेन भक्त के घर १५ दिन के उपवास का पारणा खीर से किया।१ फिर श्वेताम्बिका नगरी पधारे।
यहाँ कनखल आश्रम की स्थिति का वर्णन करना जरूरी है। इस नाम का नगर व आश्रम उत्तर प्रदेश के हरिद्वार जिले में पड़ता है। यह क्षेत्र नदी, जंगलों से भरा पड़ा है ऐसा प्राचीन ग्रन्थों में उल्लेख है।
श्वेताम्बिका का राजादेशी प्रभु का बहुत बड़ा भक्त था। उसने प्रभु का स्वागत किया। वहाँ से प्रभु सुरभिपुर पहुंचे थे। इस मार्ग में सम्राट प्रदेशी के पास जाते हुए पांच नैयिक राजाओं ने भगवान की वन्दना की।४२
सुरभिपुर का क्षेत्र कहाँ स्थित था? यह पता नहीं चला। सुरभिपुर से प्रभु गंगा को पार करने एक किश्ती में बैठे। किश्ती के नाविक का नाम सिद्धदत्त था। नौका ज्यों ही चली, त्यों ही दाहिनी ओर से उल्लू बोलने लगे। उसी नौका में खेमिल नामक एक निमित्तज्ञ बैठा हुआ था। उसने भविष्यवाणी की
"बहुत बड़ा अपशकुन हुआ है। पर इस महापुरुष के आशीर्वाद से हम बच जायेंगे।"
नौका यात्रियों से भरी पड़ी थी। आगे बढ़ते ही नौका को आँधी का सामना करना पड़ा। भयंकर तूफान में नौका मँझधार में फँस गई। यात्री चिल्लाने लगे। पर प्रभु महावीर ध्यानस्थ रहे।
यह घटना प्रभु महावीर के पूर्वभव के शत्रु सिंह के जीव द्वारा पैदा की गई थी। सिंह अब सुदंष्ट देव था। प्रभु को देखते ही उसे अपने पूर्वजन्म का वैर याद आया जब त्रिपृष्ट कुमार ने एक शेर को गुफा में अपने हाथों से मारा था। देव का आतंक था। प्रभु के पुण्य प्रताप से स्वयमेव शान्त हुआ। प्रभु के भक्तदेव कम्बल और शम्बल ने सारे उपसर्ग दूर किए। नाव किनारे पर लग गई।४३ प्रभु थूणाक सन्निवेश में
आज थूणा या स्थूणा का क्षेत्र गंगा के पार वर्तमान थानेश्वर है। इसे आज भी स्थूणा ही कहते हैं। यह नया कुरुक्षेत्र व गीता उपदेश-स्थल है। यह क्षेत्र प्राचीन कुरु देश व वर्तमान अम्बाला (हरियाणा) में पड़ता है। प्रभु यही किश्ती से उतरे। गंगा तब कहीं इस क्षेत्र में जरूर बहती होगी। आज यह गंगा कनखल आश्रम को घेरे हुए है। नदियाँ अपना रुख बदलती हैं तो बहुत किलोमीटर पीछे या आगे आ जाती हैं।
कहने का अर्थ यह है कि थूणांक सन्निवेश एक क्षेत्र था जहाँ गंगा बहती थी। फिर आगे गंगा की रेत का क्षेत्र था। आज भी हस्तिनापुर नगर गंगा की रेत का जीता-जागता प्रमाण है जो कुरु देश की राजधानी थी। हो सकता है इस सारे क्षेत्र को थूणांक सन्निवेश कहते हों।
इस बात के विपरीत उत्तर प्रदेश या बिहार में स्थूणा नाम का कोई गाँव या सन्निवेश नहीं है।
इस गाँव में पुष्य नाम का निमित्तज्ञ रहता था। प्रभु गंगा को पार करने के बाद सूखी रेत पर चले जा रहे थे। उनके चरण-चिन्हों के निशान उस रेत पर पड़ रहे थे। ये चिन्ह चक्रवर्ती के थे। पुष्य ने सोचा--'कोई चक्रवर्ती बनने वाला मनुष्य जंगल में भटक रहा है, मुझे उसकी अब सेवा करनी चाहिए। शायद किसी की साजिश के तहत उसे भागना पड़ा हो। यह एक बात तो निश्चित है कि रेत पर पड़े निशान चक्रवर्ती के हैं। अगर मैं अब उनकी सेवा करूँगा, तो भविष्य में मुझे मालामाल कर देंगे।'४४
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सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र
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