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________________ प्रभु की आँखों में करुणा के आँसू थे। प्रभु ने यक्ष को प्रतिबोध दिया। प्रभु के उपदेश से यक्ष के अन्तःचक्षु खुल गये। वह प्रभु महावीर का परम भक्त हो गया। अब रात्रि का एक मुहूर्त बचा था। प्रभु ने उसी मुहूर्त में नींद ली। उन्हें १० स्वप्न दिखाई दिये।३० जिनके फल के बारे में उत्पल ज्योतिषी ने कहा था जो इसी गाँव में रहता था। १० स्वप्न इस प्रकार हैं (१) मैं एक भयंकर ताड़ सदृश पिशाच को मार रहा हूँ। (२) मेरे सामने एक सफेद पुंस्कोकिल उपस्थित है। (३) मेरे सामने रंग-बिरंगा पुंस्कोकिल है। (४) दो रत्नमालाएँ मेरे सम्मुख हैं। (५) एक श्वेत गोकुल मेरे सम्मुख है। (६) एक विकसित पद्मसरोवर मेरे सामने है। (७) मैं तरंगाकूल महासमुद्र को हाथों से पार कर चुका हूँ। (८) जाज्वल्यमान सूर्य सारे विश्व को आलोकित कर रहा है। (९) मैं अपनी वैडूर्य वर्ण आँतों से मानुषोत्तर पर्वत ढक रहा हूँ। (१०) मैं मेरु पर्वत पर चढ़ रहा हूँ। उत्पल ज्योतिषी पहले प्रभु पार्श्वनाथ की परम्परा का साधु था। फिर साधु जीवन छोड़ इसी गाँव में ज्योतिष से जीवन यापन कर रहा था। __ जब उसने सुना कि प्रभु महावीर इस मन्दिर में रात्रि में ठहरे तो उसका माथा ठनका। वह सुबह पुजारी के साथ आया। प्रभु को सकुशल पा सारा गाँव प्रसन्न हो गया। दोनों नमस्कार कर कहने लगे "प्रभो ! आपका आत्म-तेज अपूर्व है। आपने यक्ष प्रकोप को समाप्त कर दिया है।३१ दस स्वप्नों का फल (१) मोहनीय कर्म का समाप्त होना, (२) शुक्लध्यान, (३) द्वादशांङ्गी का निर्माण, (४) (ज्योतिषी की समझ में नहीं आया) बाद में प्रभु ने बताया कि मैं साधु धर्म व श्रावक धर्म को बताऊँगा, (५) चारों संघ सेवा करेंगे, (६) देव सेवा में हाजिर रहेंगे, (७) संसार- सागर को पार करने वाला, (८) केवलज्ञान की प्राप्ति, (९) कीर्ति-यश, (१०) समवसरण में सिंहासन पर विराजित हो विशुद्ध धर्म की संस्थापना करोगे। __ अस्थिकग्राम के इस वर्षावास में फिर भगवान पर कोई उपसर्ग नहीं आया। उन्होंने १५-१५ दिन के आठ अर्ध-मास उपवास किये।३२ इस प्रकार स्वर्णिम युग की भविष्यवाणी करने वाले प्रभु महावीर ने एक रात्रि में १० स्वप्न देखे। दूसरा वर्ष मार्ग शीर्ष कृष्णा प्रतिपदा को भगवान ने अस्थिकग्राम से वाचाला की ओर विहार किया। इसके बीच वह कुछ समय मोराक सन्निवेश पधारे और मोराक सन्निवेश उद्यान में विराजे।३३ वहाँ की जनता भगवान महावीर के तपस्वी जीवन से बहुत प्रभावित हुई। वहाँ झुण्डों के झुण्ड प्रभु को नमस्कार करने आने लगे। दिन-रात्रि मेला लगने लगा। लोग प्रभु के दर्शन के लिए स्थान-स्थान से आते। इस सन्निवेश में अच्छन्दक जाति के पाषण्डस्थ (ज्योतिषी) रहते थे। वह ज्योतिष | ६६ - सचित्र भगवान महावीर जीवन चरित्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003697
Book TitleSachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year2000
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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