________________
रा
आवा आवा विचारोने लइने ज्ञानना प्रसार अर्थ सूत्रना भाषान्तर करवानुं कार्य हाथ धर्यु छे. श्री उत्तराध्ययन सूत्र मूळ सूत्रोमा प्रथम पद भोगवे छे. तेनो उद्देश दाखला दलीलोथी कर्त्तव्यनुं ज्ञान अपवानो, संसारनां भय अने लालचोथी चेताववाने अने जैन धर्मना मुख्य सिद्धान्तो समजाववानो छे. तेमां अन्य मत-मतान्तरोनुं स्पष्टीकरण अन खंडन पण काइ कोइ स्थळे करेलु छे. जीव दया उपर रचायेला जैन धर्मनो प्रथम अने मुख्य हेतु जीव- अजीवना भेद समजावानो होवो जोइए अने तेथील्ला एटले छत्रीसमा अध्ययनमां जीव-अजीवना भेदनुं वर्णन विस्तार अने स्पष्टताथी करवामां आवे छे.
समर्थ विद्वानो पोताना अपूर्व ज्ञान अने व्होळा अनुभवने परिणामे निक्षपात बुद्धिथी, सर्वानुमते एकत्र थइ जे सूत्रो, "स्मरण स्थानपरथी आपणा माटे पानांपर लखवा श्रम कर्यो ते सूत्रोनो सुरम्य प्रकाश, शब्दोद्वारा प्रदर्शित करवानुं काम सहेलं नथी. परमात्माना वास्तव स्वरुपनी झांखी निर्दोष शब्दो अने रसात्मक वाक्यों बडे सूत्रायां वणी सळतायी कराववामां आवी छे. ए चमत्का मात्र अनुभव गम्यज छे. शब्दोथी तेनुं संपूर्ण वर्णन कोइथी कदि यह शकेज नहि. तेमांची ज्ञानामृतनां करिणो स्फुरे छेबोधामृतना झरा माथी उछले छे. वांचतां के सांभळतांज अलौकिक असर उत्पन्न थवा मांडे छे. फीलसुकीना संगीन तत्वधीत भरपुर छे. तेनो 'दिव्यनाद' श्रवण करना अने 'मर्म वाक्यो' समजवानो आपणो प्रयास, ए शुभ भविष्यनुं सूचन छे. जैन तरकेतुं जीवन गाळवा माटे, सूत्रो ए कीमती कायदाओ छे. जे महानभुना एक अक्षर मात्रथी अनेक अमूल्य शिक्षाओना प्रवाह छुटे छे, तेवी शिवामणोना संग्रह-भंडार रूप आवां उपयोगी पुस्तकोनुं ज्ञान स्वधर्मी बन्धुओम प्रसार, ए उत्तम संघ भक्ति छे- ए उत्तम अमूल्य भावना छे- ज्ञानावर्णीय कर्मनो क्षय करवानी ए अचुक औषधी छे.
वर्तमान जैन शासन प्रवर्त्तक महाप्रभु श्री महावीर स्वामी- चरम तीर्थकरनी चरम मासादि रूप श्री उत्तराध्ययन सूत्र विशेष उपकारी अने विशेष चमत्कारी मनाय छे. आयुष्यना अवशेष छेल्ला वे दिवसो गुजराती आशो वद १४ - ० ) ) वे उपवास-उठना श्रीवर भगवाने ५५ पुण्य फळनां अने ५५ पाप फळनां विपाक, ते समये एकटा थयेला विद्वान् सुनी, राजा माहाराजाओना
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org