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अह पछा उइज्जति कम्मा नाण फला कडा।एव मस्सासि अप्पाणं नच्चा कम्म विवागय॥४१॥निरगंमि विरओ मेहणाओ सुसंवुडो । जोसखं नाभिजाणामि धम्मं कल्लाण पावगं॥४२॥तवो वहाण मादाय पडिमं पडिवज्जओ । एवंपि विहरओ मे छउमथ्थ ननियट्टइ ॥ ४३ ॥ नथिनूणं परेलोए इष्टी वावि तवस्सिणो। अदुवा वंचिओ मित्ति इइ भिखूनचिंतए ॥४४॥ अभूजिणा अश्थिजिणा अदुवावि भविस्सई । मुसते एवमाहंसु इइ भिखू न चिंतए ॥४५॥
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हवे बळी पर्व जन्मांतरे कीधेलां कृत्यो, जेनु फल अज्ञानछ, तेर्नु शुभाशुभ परीणाम अगळ उपर आवशे; ते मारी ए कृत्योर्नुज 2 फळछे एम मानीने मारा आत्मानुं मारे आश्चारान कर जोइए1. (४१).(२१) में मैथुननो त्याग करेलोछे, अने इन्द्रिीने नियममा 18| राखेली छे, छता है शुभ अने अशुभ [ धमेनो स्वभाव अने मोक्ष नकेन। हेतु ] बराबर जाणी शकते। नथी. तोपळी मारो त्याग
अने संयम निरर्थकज छ. माटे ज्ञानने आवरण करनारा कर्मनो मारे क्षय करव। जोइर]. [४२]. हुं तप करुं ई, सिद्धांत भणुं छ अने द्वादश विधिए साधु धर्म पाळुछ, छतां ज्ञानावरण कर्म टळतां नथी. [ माटे ज्ञानने आवरण करनारा कर्म मारे खपावयां जोइए ].२ [४३]. (२२) 'परलोके छेज नहि, तप करवायी लब्धिरुप रिद्धि पण मळवानी नथी; आ तो हुँ ठगाउंछ.' एवं चिंत्वन साधुए कदि करवं नहि. [४४]. 'पूर्वे सर्वज्ञ जिन थइ गया छे, वर्तमान काळे ( महा विदेह क्षेत्रने विषे ) सर्वज्ञ जिन [ केवलि] छे, अने भविष्य काळमां पण सर्वज्ञ जिन थशे एम जिननी हस्ती कहनार, माननार जूठाछे' एवं चिंत्वन साधुए करवु नहि.(४.),
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१. श्री कालकाचार्य- प्रज्ञा परिसहपर दृष्टांत समजबु. २. अज्ञान परिसहपर अहिर पुत्रनुं दृष्टांत आपेल छे. ३. आषाढाचायनुं दृष्टांत टीकाकारे टांकेलं छ.
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