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________________ अ.अ. किलिन्नगाय मेहावी पंकेण वा रएण वा । धिंसुवा परितावेणं सायनो परिदेवर ॥ ३६ ॥ वेइज्ज निजरा पेही 8 आयरियं धम्म मणुत्तरं । जावसरीर भेउत्ति जां काएण धारए॥३७॥ अभिवायण मझुठाणं सामीकुज्जा निमंतणं । जेताई पड़िसेवंति नतेसिं पीहए मुणी ॥ ३८ ॥ अणुकप्ताइ अप्पिछे अन्नाएसी अलोलुर । रसेसु नाणुगिझेज्जा नाणुतप्पेज्ज पन्नवं ॥ ३९ ॥ 'सेनूगं मए पुव्वं कम्मा नाण फलाकडा जेणाहं नाभिजाणामि पुठो केणइ कन्हुइ ००००००००००० १. केइ मतमा ' सोनूणं' छे. (१८)उन्हाळाना तापे करीने शरीरे परसेवो थाय, अथवा मेल अने रजथी शरीर भराय तो पण मर्यादावंत साधुए सुख शातानी हानि मारे 8 शोच करवो नहि.(३६).कर्मनो क्षय' करवा अने सर्वोत्कृष्ट चारित्र धर्म पाळवा साधुए आ सघर्छ सहन करषु अने शरीरनो नाश थतां सुधी कायाये मेल धारण करवो.[३७] (१९)कोइ ग्रहस्थ साधुने अभिवंदन करे अथवा तेने आवतो जोइने पोताना आसनेथी उठीने तेनुं सम्मान करे, अथवा भिक्षाने माटे आमंत्रण करे आवी रीते सत्कार करनार तरफ साधुए अनुराग राखवा नहि. (३८). क्रोध रहित अल्प इच्छावाळो, अजाण्याने त्यांथी [आपनारनुं जाति, कुळ, द्रव्य वगेरे जाण्या सिवाय] आहार लेनार, स्वादिष्ट भोजनने माटे लालच रहित, प्रज्ञावंत साधु रस, स्वादनी इच्छा करतो नथी अने पोतानो सत्कार न थवाथी कोप करतो नथी.3 (३९) [२०] प्रज्ञावंत साधु एम जाणे छे के निश्चे में पूर्व जन्मान्तरे, जेर्नु फळ अज्ञान छ एवां कृत्यो करेला होवां जोइए; कारण के कोइ माणस कोइ स्थानकमा कांइ सुगम प्रश्न मने पूछे छे, तेनो उत्तर हुं आपी शकतो नथी. [४०]. १. निर्जरा. २. आह श्रेष्ठि पुत्रनुं दृष्टांत टांके छ. ३. आ सत्कार परिसह उपर एक साधुनुं दृष्टांत टांकेलं छे. ०००००००००००००००००००००००००००००००००० 2०००००००००००० Jan Education Interational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003693
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Mohanlal Damodar
PublisherMehta Mohanlal Damodar
Publication Year
Total Pages352
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size20 MB
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