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8 मुहूत्तडंतु जहन्ना तित्तीसं सागरा मुहुत्तहिया । उक्कोसा होइ ठिई नायव्वा किन्ह लेसाए ॥३४॥ मुहुत्तद्धंतु जहन्ना
दस उदही पलीय मसंखभागमभ्भहिया । उक्कोसा होइ ठिई नायव्वा नीललेलाए ॥ ३५ ॥ मुहुत्तहंतु जहन्ना तिन्नुदही पलिय मसंखभाग मभ्भहिया । उक्कोसा होइ ठिई नायव्वा काउ लेसाए ॥ ३६ ॥ मुहुत्तधंतु जहन्ना दुन्नुदही पलिय मसंखभाग मम्भहिया । उक्कोसा होइ ठिई नायव्वा तेउ ले लाए ॥३७॥ मुहुन्धंतु जहन्ना दस उदही हुंति मुहुत्त मभ्भहिया । उक्कोसा होइ ठिई नायव्या पम्ह लेसाए ॥३८॥ मुहुत्तधंतु जहन्ना तित्तीसं सागरा मुहुत्तहिया । उक्कोसा होइ ठिई नायव्वा सुक्क लेसाए ॥३९॥ एमा खलु लेसाणंओहेणं ठिईओ वन्नियाहोइ । चउसुवि गईसुइत्तो लेसाणं ठिईओ बोल्छामि ॥४०॥
९ लेश्यानी स्थिति :-कृष्ण-लेश्यानी जघन्य [ डंकामां टुकी ] स्थिति अर्धा मुहर्तनी (बे घडी माठेरी), अने उत्कृष्ट स्थिति 8 तेत्रीश सागरोपम अने एक मुहर्तनी जाणवी. [३४]. नील-लेश्यानी जयन्य स्थिति अर्धा मुहर्तनी अने उत्कृष्ट स्थिति दश सा
गरोपम अने पल्यापमना असंख्यातमा भागथी अधिक जाणवी.(३५). कापोत-लेश्यानी जघन्य स्थिति अर्धा मुहर्तनी अने उत्कृष्ट स्थिति त्रण सागरोपम अने पल्योपमना असंख्यातमा भागी अधिक जाणवी.(३६). तेजो-लेश्यानी जघन्य स्थिति अर्धा मुहूर्त्तनी अने उत्कृष्ट | स्थिति वे सागरोपम अने पल्योपमना असंख्यातमा भागी अधिक जाणवी. [३७]. पद्म-लेमानी जघन्य स्थिति अर्धा मुहूर्तनी
अने उत्कृष्ट स्थिति दश सागरोपम अने एक मुहर्तनी जाणवी. (३८). शुक्ल-लेश्यानी जघन्य स्थिति अर्धा मुहत्तनी अने उत्कृष्ट
स्थिति तेत्रीश सागरोपम अने एक मुहर्तनी जाणवी. (३९). लेश्यानी सामान्य प्रकारनी स्थिति उपर प्रमाणे वर्णवी छे. हवे चार । 18 गति (नारकी, तिर्यच, मनुष्य अने देवता)ने विषे लेश्थानी स्थिति यथास्थित वर्णवं छ. [४०].
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