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________________ उ. अ. ३४ २९८ नीयावती अचवले अमाई अकुतूहले । विणीय त्रिणए दंते जोगवं उवहाण ||२७|| पिय भरू हिएसए । एय जोग समाउतो तेउ लेसंतु परिणमे ॥ २८ ॥ पयणु कोह माय माया लोभेय पयणुर पसंतचित्ते दंतप्पा जोगवं उवहाणवं ॥ २९ ॥ तहा पयणु वाईय उवसंतोजे इंदिए । एय जोग समाउतो पहले संतु परिणमे ॥३०॥ अट्ट रुद्राणि वज्जित्ता धम्म सुक्काई झायए । पसंतचित्ते दंतप्पा समिए गुत्तेय गुत्तिसु ॥ ३१ ॥ सरागे वीरागेवा उवसंते जिइंदिए । एय जोग समाउत्तो सुक्क लेसंतु परिणमे ॥ ३२ ॥ असंखिज्जाणो सप्पिणीण उसप्पि णीण जेसमया । संखाईया लोगा लेसाणं हवंति ठाणाई ॥३३॥ जे मनुष्य नम्रता युक्त, अचल, माया अने कुतूहल रहित, विनीत, इन्द्रियोने दमनार, योगवान अने उपधानवान होय, धर्म जेने प्रिय होय, धर्ममां जे दृढ होय, पापथी जे डरतो होय अने मोक्षाभिलाषी होय, एवो मनुष्य तेजोलेश्या वाळो गणाय. ( २७२८). जे मनुष्यने क्रोध, मान, माया अने लोभ बहु ओछां होय, जेनुं चित्त शान्त होय, जे आत्माने दमनार होय, जे योग तथा उपधानवान होय, वळी जे स्वल्प-भाषी [थोडं बोलनार ] अने शान्त होय, अने जेगे इन्द्रियोने वश करी होय, एवो मनुष्य पद्म-लेश्या वाळो गणाय. [२९-३०]. जे मनुष्य आर्त्तध्यान अने रौद्रध्यान तजीने वर्ग ध्यान अने शुक्ल ध्यान घरनार होय, जेनुं चित्त शान्त होय, जे आत्माने दमनार होय, जे पांच समिति अने त्रण गुप्ति युक्त होय, जे सराग अथवा राग रहित होय, शान्त होय, अने जेणे इन्द्रियोने वश करी होय, एवो मनुष्य शुक्ल-लेश्या वाळो गणाय. (३१-३२). ८ लेश्यानां स्थान :- असंख्य अवसर्पिणी अने उत्सर्पिणीना जेटला समय अने असंख्याता लोक- आकाशना जेटला प्रदेश, तेटलां (शुभ-अशुभ) स्थान लेश्यानां जाण. [३३] . Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003693
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Mohanlal Damodar
PublisherMehta Mohanlal Damodar
Publication Year
Total Pages352
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size20 MB
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