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पंचासव प्पवत्तो तीहिं अगुत्तोसुअबिरओय । तिव्यारंभ परिणओ खुद्दो साहरिसओ नरो ॥२१॥निबंधस परिणामो ३४ ३ निरसंसो अजिइंदिओ। एय जोग समाउत्तो किन्ह लेसंतु परिणमे ॥२२॥ ईसा अमरिस अतवो अविज्ज माया
अहिरियाय । गिहि पउसेयसढे पमत्ते रसलोलुए ॥ २३ ॥ साय गवेसे यारंभ अविरओ खुद्दो साहसिओ नरो।। एय जोग समाउत्तो नील लेसंतु परिणमे ॥ २४ ॥ वेके वंकसमायारे नियडिल्ल अणुज्जुए । पलिउंचगओ विहिए मिलदिठी अणारिए ॥ २५ ॥ उपफालग दुळुवाईयतेणेया विय मछुरी । एय जोग समाउत्तो काउ लेसंतु परिणमे || ॥२६॥
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___७ लेश्यानां लक्षण :-पांच आश्रवे करी प्रमादी, प्रण गुप्तिथी मोकळो, छकायनी रक्षाथी रहित, क्रुर कार्यनो करनार, सर्वर्नु अहित इच्छनार, अविचारी कार्यनो करनार, निद्धंस परिणाम वाळो (आ लोकादिनां कष्ट, दुःखनी व्हीक रहित ), जीवहिंसाथी न डरनार, अने इन्द्रियोने न जीतनार, एवो मनुष्य कृष्ण लेश्यावाळो गणाय. [२१-२२]. इर्षा, कदाग्रह, तप प्रति अभाव, अविद्या, कपट, निर्लजता, लंपटता, द्वेष, शठता, प्रमाद,रस-लोलुपता; एटला दुर्गुणे करी सहित, अने वळी इन्द्रिओनां सुखनो अभि| लापी, आरंभथी अविरत, क्षुद्र अने साहसिक, एवो मनुष्य नील-लेश्या वाळो गणाय. (२३-२४). जे मनुष्य वचन अने आचारमा वक्र [अप्रमाणिक] होय, कपटथी वर्त्ततो होय, असरल (अप्रमाणिक) होय, अन्यना उपर आक्रोश करनार होय, राग-द्वेषयी दुष्ट वोलनार होय, अश्रद्धावान होय, सम्यक्नो लक्षण रहित [अनार्य] होय, बीनाने दुःख उत्पन्न थाय एवं बोलनार होय, चोर होय, | अने अन्यनी संपत्ति जेनाथी देखी न खमाय, एवो मनुष्य कापोत-लेश्या वाळो गणाय. [२५-२६].
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