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उ.अ.
जह गोम डस्स गंधो सुणग मडस्सव जहा अहिमडस्स । इत्तोवि अणंत गुणो लेसाणं अप्पसथ्याणं ॥ १६ ॥ जह || सुरहि कुसुम गंधो गंध वासाण पिरस माणाणं । इत्तोवि अणंत गुणो पसथ्य लेसाण तिन्हंपि ॥ १७ ॥ जह कर | गयस फासो गोजिम्भा एव सागपत्ताणं । इत्तोवि अणंत गुणो लेसाणं अप्पसथ्थाणं ॥ १८ ॥ जह बूरस्सब फासो नव णीयस्सव सरीस कुसुमाणं । इत्तोवि अणंत गुणो पसथ्थ लेसाण तिन्हांप ।। १९ ॥ तिविहोव नवविहोवा सत्तावीसइ विहे कसीउवा । दुसओ तेयालोवा लेसाणं होइ परिणामो ॥२०॥
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४. अप्रशस्त (कनिष्ठ) लेश्या अर्थात कृष्ण, नील अने कापोत लेश्यानी गंध गाय, कूतरा अने सर्पनां (सडेलां) कलेबरनी दुर्गंध करतां अनंत गणी वधारे खराब होय छे. [१६] प्रशस्त [उत्तम] लेश्या अर्थात तेजो, पद्म अने शुक्ल लेश्यानी गंध सुरभि कुसुमनी अने वटातां [पीसातां] वसाणां (कपुर-काचली वगेरे)नी सुगंध करतां अनंत गणी वधारे सारी होय छे.(१७). अप्रशस्त अर्थात कृष्ण नील अने कापात लेश्यानो स्पर्श करवतना,गायनी जीभना अथवा तो साग वृक्षना पांदडाना स्पर्श करतां अनंत गणो वधारे होय छे. [१८]. प्रशस्त अर्थात तेजो, पद्म अने शुक्ल लेश्यानो स्पर्श कपासनां फुल, माखण यातो शिरीषनां फुलना स्पर्श करता अनंत गणो वधारे कोमळ होय छे. (१९). ६ लेश्यानां परिणाम त्रण प्रकारनां छे :-[१] जघन्य (कनिष्ठ); [२] मध्यम अने [३] उत्कृष्ट. ए प्रत्येकना उपर प्रमाणे त्रण त्रण भेद पाडवाथी नव, एना त्रण त्रण भेद पाडवाथी सत्तावीश, एना त्रण त्रण भेद पाडवाथी एक्काशी अने एना त्रण त्रण भेद पाडवाथी कुल २४३ परिणाम थाय छे. (२०).
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