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________________ उ.अ ००००००००० दस वास सहस्साई काऊए ठिई जहन्नियाहोइ । तिन्नु वही पलिओवममसंखभागंच ऊकोसा ॥४१॥ तिन्नु दही 18 पलिओवम मसंखभागोय जहन्ननीलठिई । दस उदहीपलिओवममसंखभागंचउकोसा ॥४२॥ दसउदही पलिओवममसंखभाग जहन्निया होइ।तित्तीस सागराओ उक्कोसा होइ किन्हाए॥४३॥एसा नेरइयाणं लेसाणं ठिईउ वन्निया होइ । तेण परं बोवामी तिरिय मणुयाण देवाणं॥४४॥ अंतोमुहुत्तमध्धा लेसाणं ठिई जहिं जहिं जाओ। तिरियाण नराणंच वज्जित्ता केवलं लेसं ॥ ४५॥ मुहुत्तधंतु जहन्ना उक्कोसा होइ पुचकोडीओ। नवहिं वरिसेहिं ऊणा ना. यव्वा सुक लेसाए ॥ ४६ ॥ एसा तिरिय नराणं लेसाणं ठिईओ वन्निया होइ । तेण परं बोछामि लेसाणं ठिईउ देवाणं ॥४७॥ ४.०००००200000000000000000000०००००००००००००००० कापोत-लेश्यानी नारकी जीव तरीकेनी जघन्य स्थिति दश हजार वर्षनी अने उत्कृष्ट स्थिति त्रण सागरोपम अने पल्योपमना असंख्यातमा भागनी जाणवी. (४१). नील-लेश्यानी (नारकी जीव तरीकेनी) जघन्य स्थिति त्रण सागरोपम अने पल्योपमना असंख्यातमा भागनी, अने उत्कृष्ट स्थिति दश सागरोपम अने पल्योपमना असंख्यातमा भागनी जाणवी. [४२].. कृष्ण-लेश्यानी (नारकी जीव तरीकेनी) जघन्य स्थिति दश सागरोपम अने पल्यापमना असंख्यातमा भागनी अने उत्कृष्ट स्थिति तेत्रीश सागरोपमनी जाणवी. [४३]. नारकी जीवनी लेश्यानी (जघन्य अने उत्कृष्ट) स्थिति उपर वर्णवी छे. हवे तिर्यंच, मनुष्य अने देवतानी लेश्यानी स्थिति वर्ण छ. (४४). शुक्ल लेश्या सिवाय बाकीनी कोइ पण लेश्यानी तिर्यंच अने मनुष्यनी स्थिति अंतर्मुहुर्त्तनी जाणवी. [४५]. शुक्ल लेश्यानी (तिर्थच अने मनुष्यनी) जघन्य स्थिति अर्धा मुहूर्त्तनी अने उत्कृष्ट स्थिति एक पूर्व-कोटि वर्षमा नव वर्ष ओछां जाणवी.(४६). तिर्यच अने मनुष्यनी लेश्यानी स्थिति उपर वर्णवीछे. हवे देवतानी लेश्यानी स्थिति वर्ण, छं. (४७), Jain Education Intematonal For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003693
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Mohanlal Damodar
PublisherMehta Mohanlal Damodar
Publication Year
Total Pages352
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size20 MB
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