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________________ .00 ००००० उ.अ. ००००००००००००००००००००००००० तओशेप हसिओराया सेणिओ मगहाहियो । एवंतेइट्ठिमंतस्स कहंनाहो नविजई॥१०॥होमि नाहो भयंताणं भोगे जा हिसंजया। मित्तनाई परिवुट्ठो माणुस्संखलुदुलहं ॥ ११ ॥ अप्पणा विअणाहोसि सेणिया मगहाहिवा अप्पणाअणा होसंतोकस्सनाहो भविस्ससि ॥१२॥ एलंबुत्तो नरिंदोसो सुसंभंतो सुविम्हओ वयणं असुयपुव्वं साहुणा विम्हयंनिओ ॥१३॥ अस्साहथ्थी मणुस्सामे पुरंअंतेउरंचमे । भुंजामि माणुसेभोए आणाइरसरियंचमे ॥ १४ ॥ एरिसेसंपयग्गंमि सव्वकाम समाप्पिए । कहं अणाहो भवईमाहुभंते मुसंवए ॥ १५ ॥ ए सांभळीने मगधाधिप श्रेणिक राजा हसी पडयो अने बोल्यो के "आप जेवा ऋद्धिना धणीने (सकळ गुण संपन्न पुरुषने) कोइ नाथ न होय ए केम संभवे ? (१०)."हे पुज्य ! आप जेवा साधु पुरुषोनो हुँ नाथ [रक्षक थइश; माटे आप मित्र ज्ञाति सहित भोग भोगवो; कारणके मनुष्यभव (वारंवार) प्राप्त थवो दुर्लभछे." [माटे भोग भागवी ल्यो]. (११). साधु कहे छे, “हे मगधाधिप श्रेणिक ! तुं पोतेज अनाथ छे; अने तुं पोते अनाथ होवा छतां बीजानो नाथ शी रीते थइ शकीश ?" (१२). पूर्वे कदि नाहि सांभळेलां एवां मुनिनां वचन सांभळीने राजा अति व्याकुळ थयो अने विस्मय पाम्यो. [१३]. राजा कहे छे, “मारे अश्व, हस्ति, मनुष्य, नगर, अंतःपुर वगेरे छे. * हुँ मनुष्यने लगता (सर्व) भोग भोग ; * अने आज्ञा तथा अश्वयनो धणी छ. (१४). "सर्व काम अने सर्व अभिलापाने तृप्त करे एवी महान संपत्तिनो धणी अनाथ केम कहेवाय? हे भगवंत : एवो मृपावाद (असत्य) बोलोमां." [१५]. * आ वाक्य प्रो. जेकोबीए गाथाने छेडे मूक्युं छे अने तेने आज्ञार्थमां लइने एवो अर्थ को छे के, 'तुं मनुष्यने लगता भोग भोगव' जे शब्दार्थ उचित जणातो नथी, कारण मूळपाठमां 'मुंजामि माणुसे भोए' शब्दो छ. 100००००००००००००००००००००००००० ܀܀܀܀܀܀܀܀ Jain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003693
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Mohanlal Damodar
PublisherMehta Mohanlal Damodar
Publication Year
Total Pages352
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size20 MB
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