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________________ उ. अ. १६. ११५ तं जहा विवित्ताई सयणासणाई सेविज्जा सेनिग्गंथेनोइथ्थिपसुपंडग संसत्ताइ सयणासणाइंसेर्वित्ता हवइ सेनि - ग्गंथे तं कहमितिचेआयरियाह ॥ निग्गंथस्सखलु इथ्थि पसुपंडग संसत्ताई सयणा सणाइंसेवमाणस्सबं भयारिस्स बंभचेरेसंकावा कंखावा वितिगिलावा समुप्पज्जेज्जा, भेयंबाल भेज्जा उम्मायंवा पाउणिज्जा दीहकालियंवारो गायंक हविज्जा केवलिपन्नत्ताओ धम्माओ भंसिज्जा तम्हाखलनो 'इथिवसुपडंग संसत्ताईसयणासणाई 'सेवित्ता हवइ सेनिग्गंथे ॥१॥ नोनिग्गंथेइथ्थीणं कहंकहित्ता हवइ सेनिग्गंथेतं कहमितेचे आयरियाह निग्गंथस्स खलुइथ्थीणं कहंकहेमाणस्स बंभयारिस्स बंभचेरे संकावा कखावा वितिगिछुवा समुप्पज्जेज्जा, भेयंवालंभेज्जा उम्मायंवापाउणेज्जा १. केटलीक प्रतोमां आ पेहेलां ' निमगंथे ' शब्दछे अने छेले ' सेवेज्जा' शब्दथी वाक्य पुरुं करेलछे. उपर प्रमाणे थवाने माटे ब्रह्मचर्यनां दश समाधिस्थान श्री स्थविर भगवाने नीचे प्रमाणे प्ररुप्यां छे :- १. निग्रंथे पोतानां शयन आसनादिने माटे गमे तेवां स्थाननो उपयोग करवो, पण स्त्री, पशु अने नपुंसकधी व्याप्त होय एवां स्थाननो उपयोग करवो नहि. श्री आचार्ये तेम न करवानुं कारण समजाच्युं छे के जो कोइ निग्रंथ पोतानां शयनासनादिने माटे स्त्री, पशु अने नपुंसकथी व्याप्त होय एवा स्थाननो उपयोग करे तो ते पोते ब्रह्मचारी होय छतां तेना ब्रह्मचर्यने माटे शंका उपजे छे, अथवा तो तेने स्त्रीयादि साथे भोग भोगववानी इच्छा थाय छे, तेने संदेह उपजे छे, चारित्रनो भंग थाय छे, उन्माद उपजे छे, लांबा काळ सुधी दाघ ज्वरादिक रोग थाय छे, अथवा तो श्री केवलीना भाखेला धर्मथी ते भ्रष्ट थाय छे; तेटला माटे निश्ये स्त्री, पशु अने नपुंसक जे स्थाने वसतां होय तेवां स्थान पोतानां शयनासनादिने माटे सेववां नहि. २ निग्रंथे स्त्री कथा-शृंगारी वात चित करवी नहि, श्री आचार्ये तेम न १. Become slave to passion. २. प्रो. जेकोबी “स्त्रीनी साथे वात करवी नहि " एवं भाषान्तर करे छे पण ते असंभवीत छे, कारण गोचरी वीगेरे घणे प्रसंगे स्त्रीनी साथे वात चीत करवानो तेमने प्रसंग पड्या विना रहेतो नथी. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.rary.org
SR No.003693
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Mohanlal Damodar
PublisherMehta Mohanlal Damodar
Publication Year
Total Pages352
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size20 MB
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