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१९६- अध्ययन १६. ब्रह्मचर्यनां दश समाधि स्थान'.
सुर्यमेआउसंतेणं भगवया एवमख्खायं इहखलुथेरेहिं भगवतेहिंदसबंभचेर समाहिठाणापन्नत्ता ॥ जेभिख्खू सोच्चा निसम्म संजम बहुले संवरबहुले समाहिबहुले गुत्तेगुत्तिदिए गुत्तबंभयारी सया अप्पमत्ते विहरेज्जा ॥ कयरे खलुतेथेरेहिंभगवंतेहिं दसबंभचेरसमाहिठाणापन्नत्ता, जेभिख्खूसोच्चानिसम्मसंजमबहुलेसंवरबहुलेसमाहिबहुले गुत्ते
गुत्तिदिए गुत्तबंभयारिसयाअप्पमत्तेविहरेज्जा, इमेखलुतेथेहिंभगवंतेहिदसबंभचेरसमाहिठाणापन्नत्ता, जे भिख्खू सोच्चा- 18 | निसम्म संजमबहुले संवरबहुले समाहिबहुले गुत्तेगुतिदिए गुत्तबंभयारी सया अप्पम्मत्ते विहरेज्जा ॥
हे आयुष्मन (जंबु)! नीचेनुं व्याख्यान में (सुधर्माए ) श्री महावीर भगनान पाप्थी सांभळ्यु छे :- जिनशासनने विषे श्री । स्थविर भगवाने ब्रह्मचर्यनां दश समाधिस्थान प्ररुप्यां छे, जेनुं श्रवण करवाथी अने समजवाथी साधु संयम अने संवरने विषे सुदृढ
रही शके छे. पोतार्नु चित्त स्थिर राखी शके छ, त्रण गुप्तिए सुरक्षित रही शके छ, पांचे इन्द्रिओने काबुमा राखी शके छे, ब्रह्मचर्य पाळी शके छे अने सदासर्वदा अप्रमत्त विचरी शके छे. ए सांभळीने शिष्य पूछे छे “हे पुज्य! श्री स्थविर भगवाने कहेला ए दश समाधिस्थान कयां कयां छे के जे सांभळवाथी अने समजवाथी साधु संयम अने संवरने विषे सुदृढ रही शके छे............वगेरे उपर प्रमाणे
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१. The ten conditions of perfect chastity. २. प्रमाद रहित Never be remiss ( in the at-al I tendance in their religions duties) पोतानां नित्य कर्तव्यामा प्रमाद न करता साधु जीवन गाळवानो बोध छे.
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