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________________ उ. अ. १५. 993 वायं विविहं समेच्चलोए सहिएखेयाणु गए कोवियप्पा | पन्ने अभिभूय सव्वदसी उवसंतेअ विहेडए स भिख्खू ॥ १५ ॥ असिप्पजीवीअ गिहेअमित्ते जिइंदिए सव्व ओविप्पमुक्के | अणुक्कसाइलहु अप्पभी चिच्चाहिं एगचरे स भि तिमि ॥ १६ ॥ ॥ इति भिख्खू झयणं पन्नरसमं सम्मत्तं ॥ १५ ॥ विविध प्रकारना धर्मवादने जे जाणे छे, सप्त दश विधे दृढ संयम २ पाळे छे, पोताना आत्माना उद्धारनुं चिंत्वन करे छे, बुद्धिमान छे, जेणे सर्व परिसहने जीत्या छे, जे सर्वदशी छे, अने जे शान्त अने हिंसा रहिन छे ते खरो साधु कहेवाय . [१५]. जे चित्रादि विद्याथी पोतानी आजीविका करतो नथी, जेणे घरवार अने सगां वहालांनो त्याग करेलो छे, जेणे इन्द्रिओने जीती छे, जे बाह्य अने अभ्यंतर गांठथी मूकाणो छे, जे रागद्वेष रहित अने अल्पाहारी छे अने जे घरवार त्यागीने एकलो विचरे छे ते खरो साधु कहेवाय. [१६]. ani * १. Religions disputations. २. मुळ पाठमा 'खेदाशुगये' छे. 'खेदानुगतः - संयम स्तेन अनुगतः ' खेदनो अर्थ अहिं संयम तररीके लेवानो छे. ३. आवा खरा साधुओनी संख्या वधवामांज शासननी उन्नति छे. श्री संघ ज्ञान बुद्धिनां साधनो का धुओने करी आपता जशे तो अने त्यारेज आवा खरा साधुओनी संख्या वक्ती जशे ४. 'जे वीजा साधुओ साथै रहे छे'Who lives together with fellow monks. आटला शब्दो कोइ प्रतमां पंदरमी गाथामां विशेष होवानुं मो. जेकोबी जणांवे छे. पण ते पाछळथी उमेराया लागे छे. Jain Educationa International ॥ पंदरम् अध्ययन संपूर्ण. ॥ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003693
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Mohanlal Damodar
PublisherMehta Mohanlal Damodar
Publication Year
Total Pages352
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size20 MB
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