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________________ B ष्योनो समूह विनयोथी तथा कुल जेम पुत्रोथी शोने दे, तेम राजा न्यायोथी शोने . ॥ ३ ॥ नीतिः कीर्तिवधूविलाससदनं नीतिः प्रसिधेधुरा। नीतिः पुण्यधराधिपप्रियतमा नीतिः श्रियां संगमः ॥ नीतिः समतिमार्गदीपकलिका नीतिःसखी श्रेयसां । नीतिः प्रीतिपरंपराप्रसविनी नीतिःप्रतीतेपदम् ॥ ४ ॥ अर्थ-नीति बेते कीर्तिरूपी स्त्रीने विलास करवानुं घरडे, प्रसिद्धिने धारण करनारीने,पुण्यरूपी राजानी (वहाली) स्त्री, लक्ष्मीनो संग करावनारी बे, सजतिना मार्गमा दीपकनी कलिका सरखी बे, कल्याणोनी सखी ने, प्रीतिनी परंपराने उत्पन्न करनारी बे, तथा ते विश्वासनुं स्थानक . ॥ ४ ॥ पूज्योपास्ति रनादरोऽधमनरे नो वंचना धर्मिणाम् । सत्या वाक् पुरतःप्रनोरनुचिनत्यागोऽनुरागो निजैः॥ संगः साधुषु नित्यकृत्यकरणं स्नेहःसहौजस्विनिदीनानाथजनेषु चोपकरणं न्याय्योऽयमध्वा सताम् ॥ १५ ॥ अर्थ-पूज्योनी सेवा,नीच माणसमां अनादर,धर्मी माणसोने नहीं गवापणुं,शेग्नी समीपे सत्य वाणी, अनुचित(आचरणोनो)त्याग,सगायोनी साथे प्रीति, साधुश्रोनी सोबत, नित्यकर्मोनुं करवापणुं, प्रतापीउनी साथे स्नेह,तथा दीन अने अनाथो प्रते उपकार एवी रीतनो सझनोनो न्यायमार्ग . ॥ ५ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003690
Book TitleDharm Sarvasvadhikar tatha Kasturi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages144
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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