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________________ ८६ - ( वर्षाकालमा यता) इंद्रधनुष्य सरखी (चपल) कांतिवाला प्राणो जले चाल्या जायो ? चंचल संपदा पण जले चाली जाओ ? परपोटा सरखा पिता, पुत्र, मित्र, स्त्री आदिक संचारो जले चाल्या जाश्रो, तेम पर्वतमांथी निकलती नदीना वेग सरखा चंचल एवा शरीरना तारुण्य यादिक गुणो पण जले चाया जार्ज ? पण कीर्तिने कीमा करवाना वनसरखो नीतिरूपी स्त्रीनो संग फक्त लांबा काल सुधी रहो? पायैर्विना निम्न-वनीमेति नदीवहः ॥ स्वयं नयवतोऽन्यर्णं, तथान्येति श्रियां जरः ॥ ७२ ॥ अर्थ-जेम नदीनो प्रवाह उपायविनाज नीची जमनप्रते जाय बे, तेम लक्ष्मीनो समूह पण न्यायवंत माणसनी पासे पोतानी मेलेज जाय बे ॥ ७२ ॥ संबंधी प्रणयैः सरः कुवलयैः सेना च रंगदूहयैः । स्त्री बाहुवलयैः पुरी च निलयैर्नृत्यं च तातालयैः ॥ गंधर्वश्च यैः सा सहृदयैरात्तत्रतो वाङ्मयैः । शिस्यौधो विनयैः कुलं च तनयै राजाति भूपो नयैः ॥ ७३ ॥ अर्थ-जेम संबंधि प्रीतिथी, तलाव कमलोथी, सेना उबलता घोमाथी, स्त्रीनो हाथ चुडी खोथी, नगरी मेहेलोथी, नृत्य " ताता थ" इत्यादिक तानोथी; घोमो वेगथी, सजा विद्वानोथी, मुनि शास्त्रोथी, शि " For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa International
SR No.003690
Book TitleDharm Sarvasvadhikar tatha Kasturi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages144
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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