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________________ एकोनविंशतीतमाष्टक. १६३ टीकानो लावार्थ- हे वादी !!! निवृत्तिना कारणपणाधी परिवाजकपणाने एटले गृहस्थपणाना अनावनेज जो तुं मांसनक्षणनी निवृत्तिरूप मानीश; अर्थात् गृहस्थपणामां प्रोदितादि मांस खावु, अने परिव्राजक अवस्थामां ते न खावू, एवी रीतनी प्राप्तिपूर्वक जो तुं तेनी निवृत्ति कहीश, तो, परिघ्राजकोना अनंगीकारपणाथी जे श्रन्युदयादिक प्रयोजनरूप फलनो अजाव कह्यो, तेज दूषण श्रावशे; बीजुं दूषण शामाटे शोध, जोश्ये? माटे तेथी मांसनक्षणमां निर्दोषपणुं तो घटी शकशेज नहीं. ___ वली हे वादी! ते जे पागल कह्यु बे के, निवृत्ति महाफखवाली तो ते निवृत्ति निर्वद्य वस्तुथी करवी? के सावध वस्तुश्री करवी ? जो कहीश के, निर्वद्य वस्तुथी करवी, तो तापसपणा श्रादिकनी पण निवृत्ति ( त्याग) करवी पडशे; केमके, तापसपणुं निर्वद्य ; पण तेम कर, तो पालवशे नहीं. अने जो तुं कहीश के, सावद्यथी निवृत्ति करवी, तो मांसजदणधीज निवृत्ति थ केमके, ते सावध . एवी रीते श्रढारमा श्रष्टकनुं विवरण समाप्त थयु. एकोनविंशतीतमाष्टकं प्रारज्यते. एवी रीते " मांसनाणमा दोष नथी" एवां वादीनां वचनखंडन कर्युः हवे " मद्यपानमा दोष नथी" एवां वादीनां वचनने खंडन करता थका कहे . मयं पुनः प्रमादांगं, तथासञ्चित्तनाशनम् ॥ संधानदोषवत्तत्र, न दोष इति साहसम् ॥१॥ अर्थ- मद्य (मदिरा) प्रमादनुं कारण , तथा उत्तम चित्तने नाश करनालं, अने संधान दोषवाळु ने माटे "तेमां दूषण नथी" एम कहेवू धृष्टता जरेलुं . Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003686
Book TitleHaribhadrasuri krutanyashtakani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1900
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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