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________________ १६५ श्रीहरिजप्रसूरिकृतान्यष्टकानि । दिकमा विधिपूर्वक मांस खावानुं कर्तुं .) तेम यज्ञादिकमा नहीं खावाथी दोष कहेलो . टीकानो नावार्थ- हे वादी!!! आ वेदना मंत्रथी पवित्र थएला मांसने लक्षण करवामां जो तुं निर्दोषपणुं मानीश; तो मांसजक्षणनो निषेधज संनवशे नहीं; शा माटे? के, ते यज्ञादिक समय शिवाय बीजी वखते मांस खावानो निषेध ने माटे एवी रीते बीजे समये मांस खावानी प्राप्तिज नथी; तो तेनी निवृत्ति केम संजवे? केमके, प्राप्तिनो निषेध करवो, ते सफल कहेवाय. तेम श्रा यज्ञादिकमां मांस नहीं खावाथी दोष कहेलो बे. हवे ते दोष देखाडे जे. यथाविधिनियुक्तस्तु, यो मांसं नात्ति वै हिजः॥ स प्रेत्ये पशुतां याति, संचवानेकविंशती ॥ ७॥ अर्थ- यज्ञ श्रादिक विधिमा जोडाएदो जेब्राह्मण मांस खातो नथी, ते परलोकमां एकवीश जवसुधी पशुपणाने पामे बे. __टीकानो लावार्थ- शास्त्रनी विधिपूर्वक यज्ञादिकमां जोडाएखो, एवो जे कोश् ब्राह्मण मांस नयी खातो, ते परलोकमां तिर्यचपणाने पामे के केटली मुदतसुधी? तो के एकवीश नवोसुधी तिर्यचपणाने पामे . - हवे मांसलक्षणनी निवृत्ति माटे वादी तरफनीज शंका जगवीने, तेनुं खंडन करता थका कहे . पारिवाज्यं निवृत्तिश्चेद्, यस्तदप्रतिपत्तितः ॥ फलानावः स एवास्य, दोषो निर्दोषतैव न ॥॥ अर्थ-- हे वादी!!! जो तुं परिव्राजकपणाने, मांसजदाणनी निवृत्ति मानीश, तो तेना (परिव्राजकोना ) अनंगीकारपणाथी जे फलनो अनाव कह्यो, तेज दूषण श्रावशे; माटे मांसजक्षणमां निर्दोषपणुं तो घटी शकतुंज नथी. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003686
Book TitleHaribhadrasuri krutanyashtakani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1900
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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