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ए होवाथी पोलादमा पीडना आ हिंसा नि
१४७ श्रीहरिजप्रसूरिकृतान्यष्टकानि ।
अर्थ-पीडाना कर्तापणाना योगें करीने, तथा देहना नाशनी अपेक्षायें करीने, तथा हुँ एने मारुं बुं, एवी रीतना त्रण प्रकारना चित्तना क्वेशथी, आ हिंसा निमित्तवाली कहेली बे. ____टीकानो लावार्थ-पीडाना कर्तापणाना योगें करीने, अने देहना नाशनी अपेदाएं करीने, तथा हुं आ प्राणीने मारुं, एवी रीतना चित्तना क्वेशपणाथी, परिणाम वादीए आ हिंसा निमित्तवाली कहेली . परिणामवादमां पीडनारने अने पीडनीयने परिणामपणुं होवाथी पीडा, कर्तापणुं, देहनो नाश, अने संक्वेश आवे जे; अने एकांत वादमां तो पागल कहेला न्यायें करीने, पीडा कर्तृत्वादिक अघटमान होवाथी हिंसा कारण विनानी थाय जे. जेने माटे कहे ने के, नाशना हेतुयें करीने नाश देहथी जिन्न कराय ? के, अजिन्न कराय ? जो जिन्न कहेशो, तो शरीरनी स्थिति तेमनी तेमज रहेवी जोशे; अने अनिन्न कहेशो तो देहज नाश थयो कहेवाशे, अने ते अयुक्त जे. केम के, अभिन्न नाश करवामां तो वस्तुनो नाशज संनवे , पण करेलु संजवतुं नथी; जेम निन्न उत्पन्न करवामां उत्पत्तिज संजवे. - आ श्लोकें करीने हिंसाना त्रण प्रकारो देखाड्या जे.
अहीं वादी शंका करे के, अमुक प्राणीथी अमुक प्राणीनुं मरण अवार्नु , एवा पोताना पूर्वे करेलां कर्मथी हिंसा श्राय . ने ? के कोई बीजी रीतथी हिंसा थाय बे ? तेमांथी जो तमो पेहेलो पन मानशो, तो पुरुषांतरे करेली हिंसाने विषे जेम, तेम कर्मना निर्जराना हेतुपणाश्री हिंसकने पण वैयावच करवावालानी माफक कर्मना क्यथी प्राप्त अतो उत्तम गुण थशे. अने जो तेश्री उलटो पद मानशो, तो, निर्विशेषपणाथी सघj हिंसनीय थशे; तेम स्वर्गना सुखादिको पण पोताना कर्मोथी अनुत्पादितज अशे; अने एवी रीते तो कर्मनुं अंगीकारपणुं फोकट थशे; एवी रीते ( तमोने ) जैनीने पण हिंसानो असंनवज थशे.
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