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________________ एकादशमाष्टक. ११ए लाग्यो. पी ते मार्गमां चोरनी पहली मां रहेनारा चोराए संभ्रमसहित तेनी तपास करी; तो तेनी पासे काचना कटकार्ड जोया; त्यारे ते विचार्य के, तो कोइ गांडो माणस बे, एम विचारि ते तेनो तिरस्कार कर्या. पाछो फरीने पण ते तेवीज ते पालो वयो ने त्यारे पण पेहेलां जेटए तेने नहीं जोयो हतो, तेर्जए पण तेनी तपास करी, तेने कहाडी मेट्यो; वली पण पाटो ते तवीज रीते वनमां गयो, एवी; रीते त्रीजी वखते पण चोरो, तेनो परिचय होवाथी तेने जवा दीधो. पनी तेणे विचार्य के, हवे मने खरेखर श्र वनमां को अटकावशे नहीं; एम विचारी, रत्नोने लेश, तेना उपयोग माटे, वांबित नगरप्रते जवाने माटे उत्सुकपणाथी, जलदी जलदी मोटी मोटी मजलो करीने पण, तथा नूख, तृषा ने थाकादिकने पण न गणतो थको जवा लाग्यो. घणो मार्ग उलंघवा बाद तृषा लगवाथी विचारा लाग्यो के, अरे ! आजे तो हुं पाणी विना मरी ज डं, ने वली ढुंआ रत्नोनो उपभोग पण मेलवी शकीश नहीं; एवी रीते मृत्युनी बीकवाला, तथा रलोना उपभोगनी इवावाला ते वेपारीए एक कादवयुक्त पाणीवालुं तलाव जोयुं. ते तलावना कादवमां खुंची गयेला एवा हरिण दिकनां कलेवरमां उत्पन्न थएला कीडाथी दुर्गंधयुक्त थपलुं, तथा रसविनानुं, तुम्छ जल जोड़ने, तेनी दुर्गंधने नहीं सुंघतो थको, तथा तेना रसनो स्वाद पण न लेतो को, खी विंचीने ते खोबेथी पाणी पीवा लाग्यो; अने तेथी शांत थयो; अने ते पाणीनां आधारथी तृषानुं दुःख मटाडीने, तुरत पोताने नगर जड़, ते रत्नोनुं सुख जोगववा लाग्यो. नो उपनय तो प्रथमज कहेलो बे. एव ते तपना दुःखात्मकपणानुं खंडन करीने, तेना कर्मोदयना स्वरूपपणानुं हवे खंडन करता थंका कहे बे. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003686
Book TitleHaribhadrasuri krutanyashtakani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1900
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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