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________________ एकादशमाष्टक. ११५ णी मुःखी होवाथी, ते सघला उत्तम तपस्वी कहेवाय; केमके, अनशनादिक तपर्नु, अने व्याधि आदिकनुं सुःखपणुं तो सरझुंज जे; कोनी पेठे के, जेम घणा धनें करीने माणस धनवान कहेवाय तेम. हजु पण आचार्य महाराजनेज ते वादी कहे जे के, एवी रीते सघला फुःखीउँने तपस्वी कहेवामां शुं दोष आवे ? महातपखिनश्चैवं, त्वन्नीत्या नारकादयः॥ शमसौख्यप्रधानत्वा, योगिनस्त्वतपस्विनः॥३॥ अर्थ-एवी रीतनी तमारी नीतिथी तो नारकी आदिकना जीवो (मुःखी होवाथी) महातपस्वी कहेवाय; अने योगी तो समतारूप उत्तम सुखवाला होवाश्री तपविनाना कहेवाय !!! टीकानो नावार्थ-“जेटला मुःखी तेटला तपस्वी,” एवी रीतनी तमारी नीतिथी तो महा मुःखवाला एवा नारकीना अने तिर्यचना जीवो पण मोटा तपस्वी कहवाय !!! अने समता रूप ने उत्तम सुख जेउने, एवा समाधिवाला योगी तो अतपस्वी कहेवाय !!! हजु पण वादीज पोतानो पद कहें तो श्रको कहे बे. युक्त्यागमबहिर्जूत, मतस्त्याज्यमिदं बुधैः ॥ श्रशस्तध्यानजननात्,प्राय श्रात्मापकारकम्॥४॥ अर्थ-ते तप युक्ति अने आगमने बाधा करनारो ने, माटे ते पंडितोए तजवो; केम के, ते उानने उत्पन्न करनार होवाथी, प्रायें करीने आत्माने अहित करनारो . टीकानो नावार्थ-युक्ति अने आगमने बाधा करनारो एवो ते तप, पंडितोए तजवो; केम के, तेमां पोताना शरीरने पीडा थाय ने; माटे युक्ति अने आगमना हृदयने जाणनाराए लोकरूढीथी प्रवर्तवू जोश्य नहीं; केम के, तेम करवाथी तेना पंडितपणाने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003686
Book TitleHaribhadrasuri krutanyashtakani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1900
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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