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________________ नवमाष्टक. १०५ (उष्ट कार्योनी ) जे शंका, ते जेमांथी गएली ने, ए, जे प्रवर्तनादिक, ते जे चिन्ह जेनु, तेने आप्तोए “विषयप्रतिनास" ज्ञान कहेलुं . ते ज्ञान के ? तो के, “अज्ञान" केतां मिथ्यात्वना उदयथी दूषित एवांजे मति, श्रुत अने अवधि ज्ञान (विप्नंगान) तेना आवरणनो ने, क्योपशम जेमां एवं बे; (मिथ्यादृष्टिउनुं जे मति, श्रुत,अने अवधिज्ञान (विनंगझान) ते अज्ञानज.)कर्वा के, अविसेसियामइच्चिय, समदिहिस्ससामइनाणं ॥ महअन्नाणं मित्था, दिठिस्स सुयंपिएएव. ॥१॥ अर्थ-सूत्रमा पण एमज कह्यु के, सम्यग् दृष्टिउनी जे बुद्धि, ते “ मतिज्ञान"; अने मिथ्यादृष्टिनी जे बुद्धि, ते “मतिश्रज्ञान" . पण, मतिमां कंई फेरफार नथी. ___ हवे ते “विषयप्रतिजास" ज्ञान शं फल आपे बे? ते कहे ले के, ते पोताने अने परने आ लोक अने परलोकसंबंधी महाअपायो- केतां महा कष्टोनुं कारणरूप थाय ने केम के, तत्वश्री ते अज्ञानज जे अने अज्ञान ने ते, महाअपायर्नु कारण बे. कह्यु बे के, अज्ञानं खलु कष्टं, क्रोधादिभ्योऽपि सर्वापायेभ्यः॥ अर्थहितमहितंवा, नवेत्तियेनावृतो लोकः ॥१॥ अर्थ-अज्ञान ने ते, खरेखर क्रोधादिक सर्व अपायोथी पण कष्टकारी केम के, ते अज्ञानश्री विटाएलो माणस हित अअवा अहित कार्यने जाणी शकतो नथी. हवे बीजा " आत्मपरिणतिमत् ” ज्ञाननुं स्वरूप देखाडवा माटे कहे . पातादिपरतंत्रस्य, तदोषादावसंशयम् ॥ अनर्थाद्याप्तियुक्तं चा, त्मपरिणतिमन्मतम् ॥४॥ अर्थ-पतन आदिकश्री परतंत्र गएला प्राणीने, तेना दोषा १४ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003686
Book TitleHaribhadrasuri krutanyashtakani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1900
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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