SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुखवस्त्रिका सिद्धि २७ ***************** ******* ************** दुर्गन्ध से बचाव करने के लिए उसका उपयोग करने को कहती! क्योंकि कारण तो सिर्फ दुर्गन्ध से रक्षा करने का ही था, न कि बोलने या धर्मोपदेश देने का इससे यह पाया जाता है कि इनकी यह सदैव कम्बल कन्धे पर डाल कर फिरने की पद्धति नूतन ही है। और यह भी किसी एक के साथ विशेष घटना (चोरी आदि) हो जाने से ही प्रारम्भ हुई प्रतीत होती है। अब पुनः मूल प्रकरण पर आते हैं। ___ इस पर भी यदि कोई शंका करे कि सूत्र में तो मुँह बाँधने का ही कहा है, नासिका का तो कहा ही नहीं, फिर आप नासिका बाँधना कैसे कहते हो? तो इसके लिए यही समाधान है कि यह प्रकरण ही बिना किसी रुकावट के दुर्गन्ध से रक्षा करने के उद्देश्य को बता रहा है। और दुर्गन्ध से बचने के लिए मुख्यतः नासिका ही को ढकना पड़ता है, तब ही शरीर के अन्दर प्रवेश करने वाली दुर्गन्धमय वायु और उसके कीटाणुओं के रास्ते में रुकावट होती है। और गन्ध जो है वो नासिका ही से आती है, इसके लिये तो दो मत हो ही नहीं सकते क्योंकि यह शास्त्र व अनुभव सिद्ध बात है। पञ्च इन्द्रिय के २३ विषय में नासिका के दो विषय सुगन्ध व दुर्गन्ध हैं। ये विषय मुख के तो हैं ही नहीं। न्याय भी कहता है कि - "घ्राण ग्राह्यो गुणो गन्धः" अर्थात् गन्ध घ्राणेन्द्रिय से ग्रहण करने लायक गुण है। प्रत्यक्ष में भी इत्र, पुष्पादि नासिका ही से सूंघे जाते हैं, सुगन्ध और दुर्गन्ध की पहिचान भी नासिका ही से होती है। स्वयं हाथ में वस्त्रिका रखने वाले साधु भी तो सूंघनी नासिका ही से सूंघते हैं। फिर इसमें विचार की बात ही क्या है? Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003678
Book TitleMukhvastrika Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy