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शंका-समाधान
इसलिए सरल बुद्धि से यह निश्चय समझिये कि मृगावती
रानी के कहने का मुख्य तात्पर्य केवल दुर्गन्ध रक्षार्थ नासिका बाँधने का था। पर व्यवहार में उसे मुँह बाँधना ही कहते हैं। देखिये -
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(अ) स्वयं मृगावती रानी के लिए भी वहाँ मुँह बाँधने ही का कहा है। पर वास्तव में उसने नासिका को भी बाँधा है। क्योंकि उसे दुर्गन्ध से रक्षा करनी अभीष्ट थी, न कि धर्म कार्य ।
(आ) ज्ञाताधर्म कथांग सूत्र के ६ वें अध्ययन में लिखा है किउन माकंदिय पुत्रों ने असाधारण दुर्गन्ध से व्याकुल हो कर बचाव के हेतु मुँह ढक लिया। यहाँ भी मुँह ढकने ही कहा पर मुख्य सम्बन्ध नासिका से ही है ।
(इ) डॉक्टर लोग किसी भयंकर रोगी के शस्त्र क्रिया (ऑपरेशन) करते हैं तब वस्त्र से मुँह व नाक को बाँधते हैं, किन्तु उसे मुँह बाँधना ही कहते हैं।
(ई) खरतरगच्छीय व कुछ और भी साधु व्याख्यान के समय नासिका से लेकर मुँह पर कपड़ा बाँधते हैं, पर उसे मुख - वस्त्रिका ही कहते हैं। यहाँ नाक को बाँधते हुए भी नाक नहीं कह कर मुख ही कहना सिद्ध हो गया ।
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( उ ) मूर्ति पूजक गृहस्थ भी पूजा करते समय नाक व मुँह पर ढा बाँधते हैं, और उसे "मुखकोश" ही कहते हैं ।
इत्यादि पर से स्पष्ट सिद्ध होता है कि - व्यवहार में नाक को बाँधते हुए भी नाक बाँधना नहीं कह कर मुँह बाँधना ही कहते हैं । इसका मुख्य कारण यह है कि -
एक तो 'मुख' प्रधान अंग है। दूसरा नासिका उसी पर (मुँह पर) है। तीसरा नासिका व मुँह के कोई विशेष अन्तर भी नहीं है ।
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