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शंका-समाधान
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प्रवेश नहीं कर सके। वैसे तो मुख - वस्त्रिका के रहते हुए भी बाहर की वायु शरीर के अन्दर प्रवेश कर सकती है, और बिना किसी विशेष रुकावट के आती रहती है । पर दुर्गन्ध से बचने के लिए किसी खास प्रयत्न की आवश्यकता रहती है।
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यद्यपि श्री गौतमस्वामी के मुँह पर मुख - वस्त्रिका थी, तथापि उस दुर्गन्ध से व दुर्गन्ध के कीटाणुओं के शरीर में प्रवेश करने से रक्षा नहीं हो सकती थी । इसीलिये तो रानी ने वस्त्र से अपना मुँह बाँध कर, श्री गौतमस्वामी से भी ऐसा करने का निवेदन किया था । इसका यही आशय था कि-मुंहपत्ति नाक व मुँह से चिपकाकर बांधी जाय, जिससे बाहर की अशुद्ध वायु आसानी से शरीर में प्रवेश नहीं कर सके ।
यदि यहाँ कोई यह तर्क करे - कि मृगा रानी ने जो मुँह बाँधा था, वहाँ तो वस्त्र ही लिखा है, पर गौतमस्वामी के लिए मुखवस्त्रिका क्यों कही ? यहाँ भी दूसरा वस्त्र विशेष ही कहना चाहिए था? तो इसका समाधान यह है कि जैन मुनि अपने पास आवश्यक और अनिवार्य वस्तुएँ ही रखते हैं। आवश्यकता से अधिक एक चिंधी भी नहीं रखते हैं, यह सर्व साधारण जानते हैं, और रानी भी यह बात जानती थी, कि इनके पास कोई फालतु वस्त्र नहीं है, इसीलिए उसने मुख- वस्त्रिका से ही दुर्गन्ध से बचने के लिए मुँह व नासिका को बाँध लेने के उद्देश्य से ऐसा कहा ।
यहाँ प्रकरण के विरुद्ध होने पर भी प्रसंगोपात एक बात कही जाती है जो खास ध्यान देने योग्य है । वह यह कि आज जिस प्रकार मूर्त्तिपूजक साधु अकारण ही कम्बल को कन्धे पर डाले फिरते देखे जाते हैं, यह पद्धति उस समय नहीं थी । यदि होती तो रानी अवश्य
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