SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुखवस्त्रिका सिद्धि २५ **************** ********************** समाधान - इस शंका का समाधान, इस विषय के पूर्वापर सम्बन्ध को देकर किया जाता है। विपाक सूत्र प्रथम श्रुतस्कन्ध, प्रथम अध्ययन में लिखा है कि मृगा रानी का मृगा नामक पुत्र जन्मान्ध था, बहरा था, गूंगा था, पंगू था एवं उसके शरीर में कुष्टादि कई प्रकार के रोग थे। शरीर से रक्त, पीप, बहता रहता था और उससे असहनीय दुर्गन्ध निकलती थी। वह खाये हुए आहार को वमन द्वारा बाहर निकाल कर पुनः खा जाता था, ऐसे घृणित कार्य से व खास कर उसकी दुर्गन्ध से बचने के लिये ही उसे भूमि घर में रक्खा था। उसकी माता जब उसके लिये आहार ले जाती थी, उस समय वह दुर्गन्ध से बचने के लिये नाक व मुँह को वस्त्र से बाँध लेती थी और उसे दूर ही से आहार देकर पुनः शीघ्र लौट आती थी। श्री वीर प्रभु से इस जन्म दुःखी आत्मा का हाल जानकर श्री गौतमस्वामी उसे देखने के लिए मृगावती रानी के समीप आते हैं, और अपनी (देखने की) इच्छा प्रदर्शित करते हैं। तब मृगावती रानी आहार का समय हो जाने से उसके लिए आहार लेकर साथ में श्री गौतमस्वामी को भी ले चलती है। भूमि-गृह के द्वार पर जाकर वह स्वयं वस्त्र से अपना मुँह बाँध लेती है, तथा श्री गौतमस्वामी से भी कहती है, कि-भगवन्! आप भी मुख-वस्त्रिका से मुँह बाँध लीजिये। यह प्रकरण का सार है, इसी पर हमारे मूर्तिपूजक भाई हाथ में मुख-वस्त्रिका रखना सिद्ध करते हैं। परन्तु जरा सद् बुद्धि से विचार करें तो उन्हें मालूम होगा कि - उस दुर्गन्धमय स्थान में जाते समय मुँह बाँधने को कहने का मतलब-ऐसा प्रयत्न करने का था कि - जिससे वह दुर्गन्ध शरीर में Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003678
Book TitleMukhvastrika Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy